‘हिंदी में कोशों की उपलब्धता, सीमाएं और संभावनाएं’ पर कार्यक्रम का आयोजन
वेब रिपोर्टर : केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, वैश्विक हिंदी परिवार एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं का संयुक्त साप्ताहिक कार्यक्रम ‘हिंदी में कोशों की उपलब्धता, सीमाएँ और संभावनाएँ’ विषय पर आयोजित हुआ। कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन एवं संचालन भाषाविद् डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने किया। कार्यक्रम के अतिथि वक्ताओं एवं श्रोताओं का स्वागत संस्थान के प्रोफेसर प्रमोद कुमार शर्मा ने किया। विषय प्रवर्तन एवं संचालन संभालते हुए भाषाविद डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा कि कोश निर्माण समय साध्य और श्रम साध्य प्रक्रिया है। उन्होंने निघंटु से लेकर हिंदी शब्द सागर और हिंदी मानक कोश तथा थिसारस आदि ऐतिहासिक कार्यों का विशेष उल्लेख किया तथा भाषा कोश हेतु सरकारी और गैर सरकारी तौर पर भाषा साधकों द्वारा दिये गए महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की।
कोशकारों के समुचित मानदेय का ख्याल रखा जाना चाहिए: अनिल शर्मा ‘जोशी’
इस अवसर पर केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा ‘जोशी’ ने वक्ताओं के अनुभव व सुझाव को भविष्य की दिशा तय करने में बहुत सहायक बताया। उन्होंने उच्चारण आदि में मल्टीमीडिया का सहारा लेने और ऑनलाइन अद्यतन होने की प्रक्रिया अपनाने पर बल दिया। उनका मत था कि कोशकारों के समुचित मानदेय का ख्याल रखा जाना चाहिए। उनके द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान के विश्वकोश एवं अध्येता कोश कार्य की प्रगति की भी जानकारी दी गई।
कोश के लिए समग्रता, प्रामाणिकता और आधुनिकता अत्यंत आवश्यक: प्रो. जगन्नाथन
गोष्ठी में प्रो. जगन्नाथन ने कहा कि कोश कला पर विस्तृत कार्य हुआ है। उन्होंने अध्येता कोश को आंदोलन की शक्ल दी जिसमें कोश और व्याकरण दोनों का समावेश होता है। ज्ञानवर्धक पावर प्वाइंट के माध्यम से प्रस्तुति देते हुए विद्वान डॉ. जगन्नाथन ने कोशों के प्रकार जैसे सामान्य, अर्थ आधारित, अर्थ संरचना आधारित और माध्यम आधारित कोशों को उदाहरण के साथ समझाया। उन्होंने कहा कि कोश के लिए समग्रता, प्रामाणिकता, आधुनिकता और मानकता अत्यंत आवश्यक है। कोश निर्माण की प्रेरणा के सवाल पर उन्होंने बताया कि त्रिनिदाद में पढ़ाते समय अध्येता कोश की ओर मेरा झुकाव हुआ और चित्र कोश, बाल कोश, लघु छात्र कोश आदि का निर्माण शुरू किया। भाषा अध्यापन हेतु यह महत्वपूर्ण उपादान है।
विद्यार्थियों की मदद से बनाया 15 हजार शब्दों का बुल्गारियन-हिंदी शब्दकोश
30 पुस्तकों के लेखक एवं 50 से अधिक शोध पत्रों को प्रस्तुत कर चुके दीर्घानुभवी कोशकार डॉ. विमलेश कान्ति वर्मा ने बताया कि पाठालोचन में उनकी विशेष रुचि रही है। वर्ष 1974 में सोफिया विश्वविद्यालय बुल्गारिया में प्रथम हिंदी प्राध्यापक के रूप में प्रतिनियुक्ति होने पर नए सिरे से कार्यारंभ हुआ। उन्होंने एक साथ तीन कार्य आरंभ किए। 1- पाठ्य पुस्तक निर्माण 2-फोनेटिक कोडिंग 3- शब्दकोश निर्माण। उन्होंने विद्वानों के साथ साथ विद्यार्थियों की भी मदद ली एवं सात सौ पृष्ठों का लगभग 15 हजार शब्दों से युक्त का बुल्गारियन-हिंदी शब्दकोश बनाया। अध्येता कोश निर्माण छात्र केंद्रित रहा। इसके केंद्र में अलग-अलग देशों के विद्यार्थी रहे।
हिंदी कोश आदि को समय-समय पर अद्यतन किया जाना चाहिए:प्रोफेसर हाइंस वरनर वेसलर
जर्मन के विद्वान एवं संप्रति उप्साला विश्वविद्यालय स्वीडन में भाषा विज्ञान तथा भाषा शास्त्र के प्रोफेसर हाइंस वरनर वेसलर ने कहा कि कोश निर्माण उनकी दिनचर्या का अंग है। केंद्रीय हिंदी संस्थान दिल्ली के छात्र रह चुके प्रो वेसलर, संस्कृत में पीएच.डी. करने के पश्चात वहाँ संस्कृत भी पढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि इंटरनेट और एप का प्रयोग बढ़ जाने से विद्यार्थी कोशों की भी इस पर उपलब्धता चाहते हैं। प्रो. वेसलर ने कहा कि विदेशी विद्यार्थियों के लिए स्वीडिश, चीनी और स्पेनिश आदि भाषाओं में शब्दकोश हैं किन्तु हिंदी में न होने से इसकी बेहद जरूरत महसूस की जाती है। उन्होंने मेग्रेगर शब्दकोश की तर्ज पर हिंदी में भी डिजिटल रूप में शब्दकोश उपलब्ध कराने की आकांक्षा जताई तथा उप्साला में भी हिंदी स्कूल खोलने की सदिच्छा प्रकट की। उनका कहना था कि विदेशी भाषा के रूप में मानक हिंदी पढ़ाने के लिए प्राध्यापकों की निहायत जरूरत है। उन्होंने बताया कि स्वीडन में हेलमन का हिंदी क्रिया कोश बहुत उपयोगी है। उनका कहना था कि मानक हिंदी कोश आदि को समय-समय पर अद्यतन किया जाना चाहिए तथा सरल विधि से चीनी, स्वीडिश आदि भाषाएँ सिखाने की तर्ज पर सरल हिंदी सिखाने की पुस्तकें आनी चाहिए।
हिंदी कोश में आधुनिकता लाने का अनवरत प्रयास जरूरी: प्रोफेसर शिव कुमार सिंह
लिस्बन विश्वविद्यालय पुर्तगाल में हिंदी और संस्कृत के प्रोफेसर शिव कुमार सिंह ने कहा कि व्याकरण से ज्यादा शब्दकोश का प्रयोग होता है। उन्होंने 6 हजार शब्दों से युक्त पुर्तगाली-हिंदी और हिंदी-पुर्तगाली शब्दकोश का निर्माण किया है जो काफी प्रचलित है। वहां एक ही 'की—बोर्ड' पर हिंदी और पुर्तगाली टाइप करने का प्रयोग भी सफल हुआ है। आजकल शब्दकोश के ऑनलाइन संस्करण रखने की तैयारी चल रही है। स्वीडन में 'बी वन ग्रेड' तक पहुँचने के लिए शब्द कोश में 30 हजार शब्दों का होना अनिवार्य है जो कि स्वीडिश-हिंदी में नहीं हैं। इसके लिए अनवरत प्रयास जारी है। नई तकनीकी से शब्दकोश में उच्चरित आवाज के अनुसार उच्चारण सीखने की व्यवस्था पर भी बल दिया जाना चाहिए। आज के विद्यार्थी अंगुली के माध्यम से ही सब कुछ उपलब्ध चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अब शब्दकोश लगभग चौबीस घंटे में अद्यतन होते जा रहे हैं। वर्ष 1998 में शुरू हुए 'वर्डनेट, यानी नेटवर्क ऑफ वर्क' की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। इसमें दो शब्दों के बीच में संबंधों को भी रूपायित किया जाता है। उन्होंने बताया कि आईआईटी, मुंबई के प्रो. पुष्पक भट्टाचार्य ने 'इंद्रधनुष' नाम से भारत की 17 भाषाओं के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है जो अंतःसंबंधों को बताता है। सेतु भाषा या ब्रिज लैंग्वेज के रूप में हिंदी की उपयोगिता बढ़ रही है। पुर्तगाल और भारत के संबंधों का इतिहास लगभग पाँच सौ वर्ष पुराना है। अतएव पुर्तगाली से हिंदी और हिंदी से पुर्तगाली में आए हुए शब्दों की भरमार है। जैसे मेज, तौलिया, बाल्टी, बिस्कुट, फालतू, बेवड़ा, बनिया, पगार आदि। हमें हिंदी कोश में आधुनिकता लाने का अनवरत प्रयास करना चाहिए।
कोशों की चमत्कारिक दुनिया है : राहुल देव
वरिष्ठ पत्रकार और भाषाकर्मी राहुल देव ने अपना सान्निध्य प्रदान कराते हुए कहा कि कोशों की चमत्कारिक दुनिया है। बेशक कुछ भाषाएँ लुप्त हो रही हैं लेकिन अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण कर वैश्विक स्तर पर भाषा में शब्द बढ़ रहे हैं। नए प्रत्यय और नए विचार आ रहे हैं। इनकी जीवंतता बनी रहनी चाहिए। हमें शब्द कोश निर्माण और अद्यतन स्थिति को गंभीरता से लेना चाहिए। ऑक्सफोर्ड की तरह हिंदी में भी परियोजनाएँ बनानी चाहिए और ऑनलाइन अद्यतन होना चाहिए। इसके अलावा समांतर कोश या थिसारस जैसे कार्यों हेतु अपना जीवन खपाने वाले विद्वानों को पीढ़ी दर पीढ़ी पारिश्रमिक मिलना चाहिए। राहुल देव का सुझाव था कि शिक्षा, संस्कृति और विदेश मंत्रालय आपसी समन्वय से हिंदी भाषा कोश के कार्य को समय सापेक्ष द्रुत गति प्रदान करें। अलग-अलग विषयों के शब्दकोश बनें और विश्वविद्यालय सहयोग करें।
पर्याय के बोझ को कम करके प्रयोग का ध्यान रखा जाए:डॉ. बरुण कुमार
केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक डॉ. बरुण कुमार का कहना था कि कोश में पर्याय के बोझ को कम करके प्रयोग का ध्यान रखा जाए। उन्होंने कॉलिन कोबिल्ड के कोश की तर्ज पर आगे बढ़ाने का आग्रह किया। भाषाविद डॉ. नवीन लोहानी का मन्तव्य था कि थिसारस की तरह के कार्य को बढ़ावा दिया जाए। कोलंबो से जुड़ी प्रो अतिला कोतलावल का आग्रह था कि हिंदी-सिंहली भाषा के शब्दकोश निर्माण को गति दी जाए और यहां की निहायत जरूरत के मद्देनजर सहयोग प्रदान किया जाए। जापान से जुड़े पद्मश्री डॉ. तोमियो मिजोकामी ने चर्चा को अत्यंत सार्थक बताया और कोश से कोश बनाने की परंपरा को पुरानी बताया। उन्होंने जापानी भाषा का तुलनात्मक कोश परिचय भी कराया। लंदन से जुड़े वैश्विक हिंदी परिवार के अंतराष्ट्रीय संयोजक पदमेश गुप्त ने सभी अतिथि वक्ताओं के प्रति आभार प्रकट किया।
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