1857 की क्रांति के नायक और अंग्रेजों के लिए चुनौती थे नाना साहब
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नाना साहब पेशवा, 1857 | स्रोत:विकिपीडिया |
नाना साहब पेशवा: 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस संग्राम में कई वीरों ने अपना योगदान दिया, जिनमें से एक प्रमुख नाम नाना साहब पेशवा का था। नाना साहब ने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का नेतृत्व किया और उन्हें कड़ी टक्कर दी।
नाना साहब ने अपनी रणनीतिक क्षमता और नेतृत्व कौशल से अंग्रेजों को मुश्किल में डाल दिया था। इससे क्रोधित होकर अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने में मदद करने वालों के लिए एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस संबंध में उर्दू और फारसी भाषाओं में एक इश्तहार (सार्वजनिक सूचना) भी जारी किया था। इस इश्तहार की एक प्रति आज भी लखनऊ स्थित राजकीय अभिलेखागार में प्रदर्शित है, जो उस समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उस समय नाना साहब पर घोषित इनाम की राशि से पता चलता है कि वे अंग्रेजों के लिए कितने महत्वपूर्ण थे। इतिहासकारों के अनुसार, उस समय का एक लाख रुपया आज के लगभग सौ करोड़ रुपये के बराबर था। यह इनाम दर्शाता है कि अंग्रेज नाना साहब को किसी भी कीमत पर पकड़ना चाहते थे।
नाना साहब पेशवा का योगदान सिर्फ कानपुर तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने पूरे देश में क्रांति की भावना को जगाया और अन्य क्रांतिकारियों को भी प्रेरित किया। उनका नाम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों में हमेशा याद किया जाएगा।
आज भी, लखनऊ स्थित राजकीय अभिलेखागार में मौजूद वह ऐतिहासिक इश्तहार उस समय के संघर्ष और बलिदान की कहानी बताता है। यह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने कितनी कठिनाइयों का सामना किया और कितने बलिदान दिए ताकि हम आज़ाद भारत में रह सकें।
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