बौद्ध धर्म का उदय भारत में हुआ। जिनकी शिक्षाओं के आधार पर यह धर्म अस्तित्व में आया वह गौतम बुद्ध थे। गौतम बुद्ध का जन्म काल ईसा पूर्व 563 में लुंबिनी में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन शाक्य गणराज्य के राजा थे। इस गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु थी। यह वह समय था जब संस्कृत शास्त्रों में प्रतिष्ठित भाषा थी। ज्ञान प्राप्ति के बाद जब शाक्य गणराज्य के राजकुमार सिद्धार्थ, गौतम बुद्ध के रूप में पहचाने गए तब उन्होंने अपनी शिक्षाओं के प्रचार के लिए तत्कालीन जनभाषा को अपनाया। उस समय उत्तर भारत में पालि जनभाषा के रूप में चलन में थी। पालि का भौगोलिक दायरा पूर्व में बिहार से पश्चिम में हरियाणा-राजस्थान तक और उत्तर में नेपाल-उत्तर प्रदेश से दक्षिण में मध्य प्रदेश तक माना जाता है। आज इसी भूभाग पर हिंदी बोली जाती है। इसलिए माना जा सकता है कि पालि प्राचीन हिंदी है।
क्या है पालि, कैसे पड़ा यह नाम
भाषाओं के नामकरण का कोई ठोस आधार नहीं होता। लोक की जिह्वा पर भाषा का जो नाम चल निकलता है वही मान्य हो जाता है। पालि भाषा के नाम के पीछे भाषा वैज्ञानिकों के कुछ तर्क हैं, लेकिन मत—विमत इतने हैं कि आप खुद को जिससे सहमत पाएं वही सत्य है। एक जर्मन विद्वान् मैक्स वैलेसर ने पालि को 'पाटलि' का संक्षिप्त रूप बताकर यह मत व्यक्त किया है कि उसका अर्थ पाटलिपुत्र की प्राचीन भाषा से है। कुछ विद्वान पालि भाषा का उत्थान गौतम बुद्ध से जोड़कर देखते हैं तो कुछ का मानना है कि पालि का मतलब ही है गौतम बुद्ध के उपदेश। आचार्य बुद्धघोष ऐसा मानते हैं कि यह भाषा मूलतः मागधी थी।
गौतम बुद्ध से तीन सौ वर्ष पहले से बोली जाती थी पालि
‘पालि’ भाषा का उद्भव गौतम बुद्ध से लगभग तीन सौ वर्ष पहले ही हो चुका था। इस भाषा के शुरुआती साहित्य का कोई पता नहीं है। हर भाषा का अपना साहित्य प्रारम्भिक अवस्था में कथा, गीत, पहेली आदि के रूप में रहता है और उसकी रूपरेखा तब तक लोगों को जबानी याद रहती है जब तक कि वह लेखबद्ध हो या ग्रंथारूढ न हो जाए। शुरुआत से लेकर लगभग तीन सौ वर्षों तक पालि भाषा जन साधारण के बोलचाल की भाषा रही। जब गौतम बुद्ध ने इसे अपने उपदेश के लिए चुना और इसी भाषा में उपदेश देना शुरू किया, तब यह थोड़े ही दिनों में शिक्षित समुदाय की भाषा होने के साथ राजभाषा भी बन गई।
लंबे समय तक राजभाषा रही पालि
गौतम बुद्ध ने पालि को अपनी शिक्षाओं के प्रसार का माध्यम बनाया। वह शाक्य गणराज्य के राजकुमार थे। यह माना जा सकता है कि राज—काज की भाषा उस वक्त संस्कृत ही रही होगी, लेकिन इसके विपरीत गौतम बुद्ध ने पालि का व्यवहार किया। मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) ने पालि को राजभाषा का दर्जा दिया। इतिहासवेत्ताओं का मानना है कि अशोक के समय में पालि की बहुत उन्नति हुई। उस समय इसका प्रचार भी विभिन्न बाह्य देशों में हुआ। अशोक के समय सभी लेख पालि भाषा में ही लिखे गए थे। यह कई देशो जैसे श्री लंका, बर्मा आदि देशों की धर्म भाषा के रूप में सम्मानित हुई।
बहुत ही ज्ञान वर्धक
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