प्रोलिंगो न्यूज डेस्क : माता—पिता के बच्चों के साथ होने वाले संवाद में भाषा का स्तर गिरा है। पांच साल पहले के मुकाबले वे बच्चों से ऐसी भाषा या शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिन्हें वर्जनीय माना जाता है। ब्रिटिश बोर्ड आफ फिल्म्स सर्टिफिकेशन के एक हालिया सर्वे में यह बात सामने आई है। बच्चों को बातचीत का शिष्टाचार सिखाने वाले अभिभावकों के भाषायी व्यवहार में इस बदलाव के कई कारण बताए गए हैं। ब्रिटेन में हुए इस अध्ययन के नतीजों को कमोबेश भारतीय संदर्भों में भी समझा जा सकता है।
भारत में बच्चों को भाषायी संस्कार तबसे सिखाया जाना शुरू हो जाता है, जब वह तोतली जुबान में बात करना शुरू करता है। रिश्तों, संबंधों, वस्तुओं के नाम और संबोधन वाले शब्दों को लेकर बच्चा बहुत संवेदनशील होता है। अपनी धुन में कभी अगर उसने गलत संबोधन किया तो मां—बाप तुरंत उसे टोकते हैं और सही शब्द और सही तरीके का बोध कराते हैं।
ब्रिटिश बोर्ड आफ फिल्म्स सर्टिफिकेशन ने हाल में एक अध्ययन कराया जो अभिभावकों और बच्चों के बीच भाषा के स्तर पर केंद्रित था। इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले पांच वर्षों में पाया गया है कि एक तिहाई माता—पिता अब अपने बच्चों से पहले से कहीं असभ्य भाषा में बात कर रहे हैं। ब्रिटेन में फिल्म के प्रकार का वर्गीकरण करने वाली इस संस्था ने पाया है कि बच्चों के लिए बनाई जाने वाली फिल्मों में भी इस प्रकार की भाषा को स्वीकार किया जाने लगा है। ब्रिटिश बोर्ड आफ फिल्म्स सर्टिफिकेशन (बीबीएफसी) का कहना है कि जिन्हें अभिभावकों के साथ बच्चों को भी देखने की रेटिंग दी गई उनमें भी ऐसी अस्वीकार्य शब्दों को चलन बढ़ा है।
अध्ययन में सामने आया है कि आज के दौर में युवा अभिभावकों में हर तीसरा अभिभावक बच्चों के साथ संवाद में भाषायी असंतुलन का शिकार है। ये अभिभावक बच्चों से कठोर भाषा में बात करते हैं। बीबीएफसी ने अंग्रेजी के आठ ऐसे शब्दों को अब बच्चों की फिल्मों के इस्तेमाल करने की अनुमति देने का मन बनाया है।
55 से अधिक के लोग बरतते हैं संयम : इस अध्ययन में कहा गया है कि 55 से अधिक उम्र के अभिभावक अपनी बातचीत में शब्दों का चयन करने में संयम बरतते हैं। पांच वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों के 45 फीसदी अभिभावकों ने स्वीकार किया है कि उनकी बोलचाल की भाषा में कठोर शब्द पहले के मुकाबले कहीं अधिक हो गए हैं।
साठ फीसद ने माना, कठोर भाषा जीवन का हिस्सा : इस अध्ययन में जिन अभिभावकों से रायशुमारी की गई उनमें से साठ फीसद ने माना कि जीवन में कठोर शब्द, असभ्य शब्दों की उपस्थिति बढ़ी है। ऐसी भाषा अब दैनिक जीवन का हिस्सा बन रही है। (इंटरनेट से प्राप्त इनपुट के साथ पुनर्लेखन)
ब्रिटिश बोर्ड आफ फिल्म्स सर्टिफिकेशन ने हाल में एक अध्ययन कराया जो अभिभावकों और बच्चों के बीच भाषा के स्तर पर केंद्रित था। इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले पांच वर्षों में पाया गया है कि एक तिहाई माता—पिता अब अपने बच्चों से पहले से कहीं असभ्य भाषा में बात कर रहे हैं। ब्रिटेन में फिल्म के प्रकार का वर्गीकरण करने वाली इस संस्था ने पाया है कि बच्चों के लिए बनाई जाने वाली फिल्मों में भी इस प्रकार की भाषा को स्वीकार किया जाने लगा है। ब्रिटिश बोर्ड आफ फिल्म्स सर्टिफिकेशन (बीबीएफसी) का कहना है कि जिन्हें अभिभावकों के साथ बच्चों को भी देखने की रेटिंग दी गई उनमें भी ऐसी अस्वीकार्य शब्दों को चलन बढ़ा है।
अध्ययन में सामने आया है कि आज के दौर में युवा अभिभावकों में हर तीसरा अभिभावक बच्चों के साथ संवाद में भाषायी असंतुलन का शिकार है। ये अभिभावक बच्चों से कठोर भाषा में बात करते हैं। बीबीएफसी ने अंग्रेजी के आठ ऐसे शब्दों को अब बच्चों की फिल्मों के इस्तेमाल करने की अनुमति देने का मन बनाया है।
55 से अधिक के लोग बरतते हैं संयम : इस अध्ययन में कहा गया है कि 55 से अधिक उम्र के अभिभावक अपनी बातचीत में शब्दों का चयन करने में संयम बरतते हैं। पांच वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों के 45 फीसदी अभिभावकों ने स्वीकार किया है कि उनकी बोलचाल की भाषा में कठोर शब्द पहले के मुकाबले कहीं अधिक हो गए हैं।
साठ फीसद ने माना, कठोर भाषा जीवन का हिस्सा : इस अध्ययन में जिन अभिभावकों से रायशुमारी की गई उनमें से साठ फीसद ने माना कि जीवन में कठोर शब्द, असभ्य शब्दों की उपस्थिति बढ़ी है। ऐसी भाषा अब दैनिक जीवन का हिस्सा बन रही है। (इंटरनेट से प्राप्त इनपुट के साथ पुनर्लेखन)
बहुत ही सुंदर और बोधगम्य सवाल खड़े किए गए हैं.रोटी दाल की चिंता में हम भारतीयों की भाषा का स्तर गिरा है, यह स्वीकार किया किया जाना चाहिए.हमारी इस गिरावट की वजह इस चिंता में प्रेम का अभाव हो गया है.
ReplyDeleteOMG. Ye corona jo na karaye.
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