प्रोलिंगो न्यूज डेस्क : वैश्विक महामारी कोरोना काल में दुनिया के हर क्षेत्र अचानक प्रभावित हुए हैं। हिंदी की कक्षाओं ने भी अलग रूप धारण किया है। प्रौद्यौगिकी ने बड़ी तेजी से शिक्षक–शिक्षार्थी समुदाय में अपनी पैठ बनाई। परंपरागत कक्षाओं की जगह गूगल आदि क्लास रूम ने अनायास ही अपनी सशक्त भूमिका साबित की। इस अवधि में तकनीकी ने शिक्षकों की प्रतिभा को भी तराशने का क्रम जारी रखा। लगभग 25 देशों से जुड़े भाषाकर्मियों को सबोधित करते हुए ड्यूक विश्वविद्यालय अमेरिका की प्रो. कुसुम नैपसिक ने कहा कि कोरोना काल में शिक्षण में कला, साहित्य और संगीत का अधिक सहारा लेने से ऑनलाइन कक्षाएं प्रभावशाली रहीं। महात्मा गांधी संस्थान मॉरीशस के प्रो. गुलशन सुखलाल का अनुभव था कि विषय, प्रक्रिया और प्रणाली ने चिंतन के आयाम को बदला है। लिस्बन विश्वविद्यालय पुर्तगाल के प्रो. शिव कुमार सिंह का मंतव्य था कि कोरोना द्वारा अचानक कोई विकल्प न छोड़े जाने के बावजूद अभिप्रेरण और अध्ययन हेतु नई तकनीकी और प्रविधि अपनाई गई जो विकसित देशों में भी यत्र तत्र असफल रही। भारतीय दूतावासों ने भी सक्रिय सहयोग किया। जापान से जुड़े वयोवृद्ध हिंदी विद्वान पद्मश्री डॉ. तोमियो मिजोकामी ने कहा कि उम्रदराज जन सामान्य में तकनीकी जिज्ञासा बढ़ी है। 
  वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव का उद्गार था कि इस काल में तकनीक सहायिका बनकर आई है। हमें मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. आलोक गुप्ता ने साहित्य की केंद्रीय संवेदना को पढ़ाने में कठिनाई बताई। भाषा वैज्ञानिक प्रो. जगन्नाथन ने दूरस्थ शिक्षा को काफी हद तक सफल बताया। भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी ने वैश्विक संकट कोरोना के अनुभव को भविष्य की दिशा तय करने में मील के पत्थर की संज्ञा दी एवं वक्ताओं के विशद अनुभव को समादर दिया। हिंदी भवन, भोपाल के निदेशक डॉ. जवाहर कर्णावत ने विषय प्रवर्तन किया। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर की प्रो॰ संध्या सिंह द्वारा अनुभवजन्य प्रभावशाली संचालन किया गया तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से प्रो. पदमेश गुप्त ने यू.के. हिन्दी समिति के नए प्रयोगों के साथ धन्यवाद ज्ञापित किया। 

विश्व हिन्दी शिक्षण विमर्श शृंखला कार्यक्रम दिनांक 13 जून 2021, रविवार, शाम 6 बजे
रिपोर्ट – डॉ. जयशंकर यादव

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