दक्षिण अफ्रीका के स्कूलों में होते हैं लघु भारत के दर्शन


प्रोलिंगो न्यूज़ : केंद्रीय हिन्दी संस्थान, विश्व हिन्दी सचिवालय एवं वैश्विक हिंदी परिवार के तत्वावधान में ‘अफ्रीका में हिन्दी शिक्षण’ पर साप्ताहिक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने फ़िजी में अपने कार्यकाल को याद करते हुए जमीनी हकीकत को बताया और प्रवासियों के श्रद्धा और स्नेह का समादर किया। उन्होंने प्रशिक्षित अध्यापकों के अभाव को दूर करने, ऑनलाइन पाठ्यक्रम चलाने, रेडियो स्टेशन कार्यक्रमों आदि का हिन्दी के लिए प्रयोग करने, शिक्षण में श्रेष्ठ पद्धतियाँ अपनाने, रोजगारपरक पाठ्यक्रम बनाने तथा आगामी दशकों के लिए व्यवस्थित कार्यक्रम बनाने आदि की आवश्यक बताया। उन्होंने व्यक्तिगत व संस्थागत रूप से हर संभव प्रयास मदद का भरोसा दिया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के विद्वानों की गरिमामयी उपस्थिति पर संतोष प्रकट किया और वक्ताओं के अनुभव व सुझाव को बहुत उपयोगी बताया।

गोष्ठी में विषय प्रवर्तन नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर की हिन्दी प्रवक्ता डॉ. संध्या सिंह ने किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए आरंभ में प्रसिद्द व्यंग्यकार राजेश कुमार ने सभी का स्वागत करते हुए अफ्रीका के विस्तृत क्षेत्र एवं हिन्दी की स्थिति की नई संभावना एवं उद्भावना पर अपने विचार रखे। गतिमान बैंकिंग से जुड़े डॉ॰ नवेन्दु वाजपेयी ने कार्यक्रम की प्रस्ताविकी रखी। केंद्रीय हिन्दी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक गंगाधर वानोडे ने सम्माननीय वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय और स्वागत किया गया।

दक्षिण अफ्रीका के क्वाजुलू विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो. ऊषा शुक्ल ने भारतीय ज्ञान परंपरा, भाषा, संस्कृति, लोक गायन, अप्रवासी इतिहास एवं अफ्रीकी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों की प्रगाढ़ परंपरा का जिक्र किया एवं हिन्दी की महत्ता और भोजपुरी का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यहां बेशक हिन्दी में रोजगार के अवसर नगण्य हैं और माहौल भी प्रतिकूल है फिर भी हिन्दी प्रेम अगाध है। 

दक्षिण अफ्रीका की राष्ट्र भाषा प्रचार समिति एवं हिन्दी शिक्षा संघ के अध्यापक हीरालाल सेवानाथ ने छह पीढ़ी या लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व भारतीय मूल से आए गिरमिटिया लोगों की जीवटता और जीवंतता को याद किया। उन्होंने रामायण और हनुमान चालीसा को नमन किया। उन्होंने गर्व से अपने को अब वहाँ का असल निवासी बताया। उन्होंने बताया कि यहाँ हिन्दी सिखाने के लिए संगीत का भी सहारा लिया जाता है। यहाँ शिक्षक संघ लगभग 73 वर्ष पुराना है और इस समय हमारा ध्येय वाक्य ‘पढ़ो और पढ़ाओ’ है। इस समय यहाँ 60 पाठशालाओं में लगभग 900 विद्यार्थी हिन्दी पढ़ रहे हैं। मंदिरों और उपयुक्त निवास स्थानों पर भाषाकर्मियों द्वारा अवैतनिक रूप से हिन्दी पढ़ाई जाती है।

डरबन में दशकों से हिन्दी शिक्षण से जुड़ी हिन्दी शिक्षा संघ की पूर्व अध्यक्ष मालती रामबली ने भावपूर्ण शब्दों में कहा कि हिन्दी यहाँ आई है और सदा रहेगी। बेशक हिन्दी सीखने की अनिवार्यता नहीं है एवं रोजगार की संभावनाएँ भी बहुत कम हैं। हम मानते हैं कि भाषा गई तो संस्कृति गई। हम मिलकर समस्या का समाधान बनें। उन्होंने वहाँ से निकलने वाली पत्रिका ‘हिन्दी खबर’ की भी चर्चा की, जिसमें विभिन्न स्थानों पर चले वाली कक्षाओं और पाठ्यक्रमों की जानकारी होती है।

दक्षिण अफ्रीका के बेलवर्टन माध्यमिक विद्यालय के भाषा विभाग की अध्यक्ष अदिति महाराज ने इस परिचर्चा में कहा कि हमारे यहाँ मंदिरों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है किन्तु मातृ स्वरूपा हिन्दी दूर होती जा रही है। शब्द भंडार की कमी दिखती है। बच्चे मानवीय संबंधों दादा–दादी आदि को अंग्रेजी में संबोधित करने लगे हैं। चावल को भी ‘राइस’ कहना पसंद करते हैं। व्याकरण पढ़ाने में कठिनाई होती है किन्तु हम फिल्मी गानों का सहारा लेकर समझाते हैं, जैसे भविष्यत काल के लिए– ‘तू मायके चली जाएगी, मैं डंडा लेकर आऊँगा’।

तंजानियाँ के दार–ए–सलाम के इंडियन स्कूल की हिन्दी शिक्षिका सविता अशोक मौर्य ने कहा कि उनके सीबीएससी पाठ्यक्रम वाले स्कूल में कई देशों के लगभग 900 विद्यार्थी पढ़ते हैं। प्राइमरी से बारहवीं तक की कक्षाएँ हैं। विषय को समझ कर बच्चे स्वयं पीपीटी तैयार करते हैं। हमारे स्कूल में 5 हिन्दी अध्यापक हैं। तंजानियाँ में इक्कीस वर्षीय अनुभवी शिक्षिका सविता अशोक मौर्य ने कहा कि यहाँ स्कूल में लघु भारत के दर्शन होते हैं। स्वामी विवेकानंद केंद्र में लगभग 350 बच्चे हिन्दी पढ़ते हैं। कुछ अभिभावक बच्चों को भारत के मुंबई आदि शहरों में भेजकर भी हिन्दी पढ़ाते हैं। हम हिन्दी दिवस और विश्व हिन्दी दिवस आदि समारोहों का भी आयोजन करते हैं।

तंजानियाँ के दार–ए–सलाम में ‘हिन्दी हैं हम’ संस्था के संस्थापक एवं अध्यक्ष तथा फार्मा उद्योग से जुड़े  जितेंद्र भारद्वाज ने कहा कि हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य हमारी संस्कृति के बीज-वर्धन सा है। हम हिन्दी के लिए रुचि पैदा करें। पूर्वी अफ्रीका के कुल 19 देशों में से 6 देशों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। धार्मिक स्थानों के अलावा सिनेमा से भी प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है। हिन्दी हमारा व्यवहार और संसार है। हिन्दी व्यापार और व्यवहार की भाषा बननी चाहिए। बासठ देशों के हिन्दी रचनाकारों से जुड़े भारद्वाज जी ने जोशीले अंदाज में कहा कि दो सौ करोड़ की आबादी में पचास करोड़ सेवकों की आवश्यकता है।

वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से कृतज्ञता प्रकट करते हुए जयशंकर यादव ने दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी के कीर्तित एवं अकीर्तित नायकों को नमन किया एवं सात समंदर पार भारत–भारतीयता को कायम रखने वालों को श्रद्धानवत प्रणाम किया।

कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ. तोमियो मीजोकामी, जापान, सुनीता पाहुजा, मॉरीशस, अनूप भार्गव एवं डॉ. मीरा सिंह, अमेरिका, डॉ. पदमेश गुप्त, लंदन, शिव निगम, त्रिनिदाद, रेखा राजवंशी, आस्ट्रेलिया, भाषाविद प्रो. वी जगन्नाथन, नारायण कुमार व विजय कुमार मल्होत्रा आदि की विशेष उपस्थिति रही।

Post a Comment

Previous Post Next Post