हिंदी की राष्ट्रीय संस्थाएं-भूमिका और संभावनाएं विषय पर अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी 



प्रोलिंगो न्यूज़ : केंद्रीय हिंदी संस्थान, वैश्विक हिंदी परिवार, विश्व हिंदी सचिवालय एवं सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में हिंदी की राष्ट्रीय संस्थाएं-भूमिका और संभावनाएं विषय पर अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी आयोजित हुई जिसका उद्देश्य सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं के प्रमुखों एवं प्रतिनिधियों के पारस्परिक विचार-विमर्श करना था।

कार्यक्रम में साहित्यकार और केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने कहा कि इस समय अंग्रेजी की आंधी है, किंतु संस्थान पूरे देश में अपने कार्यों में पूरी गंभीरता से लगा हुआ है। पूर्वोत्तर हमारी प्राथमिकता का क्षेत्र है। उन्होंने हिंदी साहित्यकारों के जन्मस्थलों का पुनरोद्धार संबंधी संस्थान की अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं, गतिविधियों एवं कार्यकलापों की जानकारी दी। उन्होंने व्यावसायिक पाठ्यक्रमों, अभियांत्रिकी शिक्षण में भारतीय भाषाओं के प्रवेश को महत्वपूर्ण पहल बताया। उन्होंने कहा कि हमारे सामने अनंत चुनौतियां हैं और हिंदी की सब संस्थाओं के बीच संवाद का अभाव है। हमें यदि बड़े लक्ष्य हासिल करने हैं तो सभी संस्थाओं के बीच समन्वय, संवाद एवं संयोजन विकसित करना होगा, जिसकी पहल हमने आज की है। हमारी सरकारी संस्थाओं एवं निजी क्षेत्रों को मिलकर काम करना होगा और सभी संस्थाओं को किसी एक वेबसाइट पर साथ आना होगा, जहां सबकी सामग्री डिजिटल प्रारूप में सरंक्षित रखी जा सके। प्रौद्योगिकी प्रयोग से हमें बॉलीवुड, खेल, न्यायालयों आदि जीवन के हर क्षेत्र में भारतीय भाषाओं को स्थापित करना होगा और निजी क्षेत्र से संपर्क बढ़ाते हुए भाषा के प्रचार-प्रसार का लक्ष्य प्राप्त करना होगा।

इस अवसर पर लेखक डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि हिंदी से जुड़ी हुई सभी संस्थाएं यदि साथ मिलकर काम करें एवं एक-दूसरे के क्रिया कलापों की जानकारी साझा करें तो एक ही काम बार-बार नहीं करना पड़ेगा। इससे न सिर्फ बड़ा काम हो सकता है बल्कि हिंदी के प्रचार-प्रसार, शिक्षण, प्रशिक्षण की दशा और दिशा भी प्रभावशाली तथा उल्लेखनीय होगी।

संगोष्ठी में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक प्रो. रमेश कुमार पांडेय ने कहा कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में उनका निदेशालय संस्थाओं को प्रोत्साहित करता है, साथ ही शब्दकोशों का प्रकाशन जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी किए जाते हैं।

साहित्यकार, पूर्व कुलपति एवं अनेक संस्थाओं से संलग्न उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के अध्यक्ष डॉ. सदानंद प्रसाद गुप्त ने संस्थान से जुड़े दीनदयाल सम्मान, अवंती बाई, साहित्य भूषण जैसे अनेक सम्मानों की चर्चा की। संस्थान की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका संस्थान हिंदी भाषी और गैर हिंदी भाषी लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित कर उन्हें सम्मानित एवं प्रोत्साहित करता है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे पास कला, सामाजिक विज्ञान, दर्शन, संस्कृति से जुड़े विषयों पर अनेक पुस्तकें हिंदी में प्राप्त होती हैं किंतु अर्थशास्त्र, विज्ञान, चिकित्सा, तकनीकी विषयों पर पुस्तकें कम आती हैं। इसका निहितार्थ है कि तकनीकी एवं विज्ञान आदि ज्ञान क्षेत्र के विषयों में पुस्तकों का अभाव है। इससे हमारी भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा, शिक्षण एवं प्रशिक्षण का संकल्प को कमजोर होगा।

भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ. कुसुम खेमानी ने परिषद के देश एवं विदेश में कार्यकलापों, पुरस्कारों आदि की जानकारी देते हुए कहा कि विदेशों में हिंदी एवं भारत के तीर्थों के प्रति लोगों में विशेष स्नेह एवं श्रद्धा है और यह बहुत बड़ी समन्वयन शक्ति है जो हिंदी को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित करने में सहायक होगी।

हिंदी भवन भोपाल के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट ने अपने संस्थान की गतिविधियों तथा जन सहयोग से उपलब्धियों के विषय में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप, एक ही विचार के अनुयायियों के जमा होने या साधनों के अभाव से विफल सिद्ध होती हैं और यह हिंदी से संबंधित संस्थाओं के लिए भी सत्य है।

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलपति षोडशी मोहन दां ने कहा कि हिंदी भारत सरकार की राजभाषा, राष्ट्रभाषा एवं संपर्क भाषा तो है किंतु अभी हिंदी को उचित स्थान ही प्राप्त नहीं हुआ है इसलिए अभी गांधी जी का स्वराज स्वप्न भी अधूरा है।

कार्यक्रम में सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों का स्वागत मैसूर केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. परनाम सिंह ने एवं संचालन प्रो. विजय मिश्र ने किया। आभार डॉ. संध्या सिंह ने व्यक्त किया।

Post a Comment

Previous Post Next Post