प्रोलिंगो न्यूज़ : भारतीय साहित्य के दुनिया की दूसरी भाषाओं में अनुवाद का इतिहास काफी पुराना है। संस्कृत, पाली, प्राकृत में लिखे गए ग्रंथों के आठवीं शताब्दी से ही दुनिया की दूसरी भाषाओं में अनुवाद का काम शुरू हो गया था। विश्व भ्रमण करने वाले विद्वानों ने इस महत्वपूर्ण कार्य की शुरुआत की। सन 973 में उज्बेकिस्तान में पैदा हुआ अल-बिरूनी भी एक ऐसा ही लेखक, अनुवादक था जिसने कई संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद किया। 

सीरियाई, फारसी, हिब्रू और संस्कृत का किया अध्ययन
उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म में दसवीं सदी में पैदा हुए अल-बिरूनी ने भाषाओं के बीच दीवार खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ख्वारिज्म तब शिक्षा का केंद्र था। अल-बिरूनी ने सीरियाई, फारसी, हिब्रू और संस्कृत का अध्ययन किया। इन भाषाओं में उसे महारत हासिल थी। अल-बिरूनी ने तब की दुनिया की प्रमुख भाषाओं के ज्ञान साहित्य का प्रचुर मात्रा में अरबी, फारसी में अनुवाद किया। 

यूनानी ग्रंथ का संस्कृत में किया अनुवाद
अल—बिरूनी ने जिन संस्कृत ग्रंथों को अरबी में अनुवाद किया उनमें पतंजलि का व्याकरण पर ग्रंथ भी शामिल है। उसकी भारतीय साहित्य में रुचि सन 1017 के बाद तब हुई जब वह एक राजनीतिक बंधक के रूप में ख्वारिज्म से गजनी लाया गया। पहले तो गजनी शहर उसे पसंद नहीं आया लेकिन बाद में उसे यह शहर पसंद आने लगा। सत्तर वर्ष की आयु में मृत्यु तक वह गजनी में ही रहा। गजनी से ही उसने उत्तर भारत की यात्राएं कीं। उत्तर भारत में उसने पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ समय बिताया और भारतीय संस्कृति, धर्म एवं दर्शन का ज्ञान अर्जित किया। अपने पुरोहित मित्रों के लिए उसने यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड के कार्यों का संस्कृत में भी अनुवाद किया। 

भारतीय संस्कृति पर केंद्रित है किताब-उल-हिंद 
अल-बिरूनी की पुस्तक किताब-उल-हिंद किसी विदेशी द्वारा भारतीय लोगों की जीवनचर्या पर लिखी चर्चित पुस्तक है। इसमें उसने धर्म, दर्शन, त्योहार, खगोल विज्ञान, सामाजिक जीवन, रीति रिवाज, प्रथाओं, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र आदि के बारे में विस्तार से लिखा है। इस पुस्तक में अस्सी अध्याय हैं। उसकी यह पुस्तक अरबी में लिखी है। इससे जाहिर है कि वह अरबी बोले जाने वाले क्षेत्र के पाठकों के बीच इस ज्ञान को पहुंचाना चाहता था। 

संस्कृत को सीखना मुश्किल कार्य बताया 
संस्कृत के बारे में वह लिखता है, ''यदि आप इस कठिनाई (संस्कृत भाषा सीखने की) से पार पाना चाहते हैं तो यह आसान नहीं होगा, क्योंकि अरबी भाषा की तरह ही शब्दों तथा वि​भक्तियों दोनों में ही इस भाषा की पहुंच बहुत विस्तृत है। इसमें एक ही वस्तु के लिए कई शब्द, मूल तथा व्युत्पन्न, दोनों प्रयुक्त होते हैं और एक ही शब्द का प्रयोग कई वस्तुओं के लिए होता है, जिन्हें भली प्रकार समझने के लिए विभिन्न विशेषण संकेतपदों के माध्यम से एक दूसरे से अलग किया जाना आवश्यक है।''

तेरहवीं शताब्दी की अरबी पांडुलिपि का एक चित्र जिसमें छठीं शताब्दी ईसा पूर्व एथेंस के राजनेता एवं कवि सोलोन को विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए दिखाया गया है। स्रोत:सीबीएसई

1 Comments

  1. इतिहास के गर्भ में छुपी नई जानकारी, प्रोलिंगो की ऐसी खबरों का बेसब्री से रहता है इंतजार।

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