चार्ल्स विलकिंस 1770 में कोलकाता आए। उनकी नियुक्ति जूनियर क्लर्क के रूप में हुई थी। वह इंग्लैंड में समरसेट के एक धनी परिवार से थे। भारतीय भाषाओं के अध्ययन में उन्होंने बहुत काम किया था। काशी में उन्होंने शिवाला घाट के पास निवास बनाया था। 1774 में उन्होंने खराब स्वास्थ्य के आधार पर हेस्टिंग्स से प्रशासनिक कामों से छूट्टी मांगी, ताकि वह बनारस जा कर संस्कृत पढ़ सकें। कोलकाता में हेस्टिंग्स ने भारतीय भाषाओं के प्रति विलकिंस के लगाव को देखा था। उन्होंने इस प्रस्ताव को ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड में रखा जहां से वह पास हो गया।
हेस्टिंग्स के प्रयासों के बिना गीता का यह पहला अनुवाद संभव नहीं हो पाता। अक्टूबर 1784 में विलकिंस ने हेस्टिंग्स को अनुवाद प्रदान किया था। अपनी पत्नी को लिखे पत्र में एक स्थान पर हेस्टिंग्स ने लिखा था कि आज मेरे मित्र विलकिंस ने मुझे नायाब तोहफा दिया है। इसे मैं जल्द ही जनता को समर्पित करने वाला हूं। 1784 के दिसंबर माह में हेस्टिंग्स ने इस अनुवाद को ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड के सामने पेश किया और पूरा जोर लगाया कि कंपनी इसका प्रकाशन करे। उन्हीं के प्रयासों के बाद 1785 में यह कृति छपकर आई। अंग्रेजी अनुवाद के दो वर्ष बाद विलकिंस की इसी रचना को आधार बनाकर रशियन और फ्रेंच भाषा में गीता का अनुवाद हुआ। इसके कुछ वर्ष बाद जर्मन भाषा में भी गीता का अनुवाद किया गया।
यूरोपीय भाषा में संस्कृत का पहली बार व्याकरण भी लिखा
चाल्र्स के काशी आने से पहले ही कोलकाता में काशीनाथ का नाम प्रसिद्ध था। एक स्थान पर काशीनाथ ने खुद लिखा है कि चाल्र्स विलकिंस से काशी में उनकी मुलाकात हुई। विलकिंस ने कई पंडितों को उनके पास भेजकर हिंदू शास्त्र और संस्कृत सीखने की इच्छा जताई थी। विलियम जोंस ने भी काशीनाथ का कई स्थानों पर सम्मान के साथ जिक्र किया है। किसी भी यूरोपीय भाषा में संस्कृत के पहले व्याकरण लेखन का श्रेय भी चार्ल्स विलकिंस को जाता है। यह कार्य भी उन्होंने काशीनाथ भट्टाचार्य की सहायता से ही की थी।