नई दिल्ली: अनुवाद एक कला है। इस कला में हाथ साधना असंभव नहीं तो थोड़ा मुश्किल ज़रूर है। लेकिन साहित्य, समाज, सिनेमा में रुचि रखने वाले कुछ लोग अच्छी पुस्तकों को अपनी बोली—भाषा के पाठकों तक पहुंचाने के लिए दिन—रात लगे हुए हैं। अपने पूर्णकालिक पेशे में लगे रहने के दौरान ही पठनीय साहित्य को अपनी मातृभाषा में अनूदित करने का इनका जुनून देखने लायक है। दो अलग—अलग संस्कृतियों के बीच पुल बनकर ये लोग उस खाई को पाटने का कार्य कर रहे हैं, जिसकी जरूरत समाज को लंबे समय से रही है।
हिंदी व संस्कृत का साहित्य संताली में
प्रोफेसर सुनील कुमार मुर्मू कोल्हान प्रमंडल के पश्चिम सिंहभूम जिले के सिंहभूम कॉलेज चांडिल में संस्कृत विभाग के प्रोफेसर हैं। उन्होंने संस्कृत साहित्य से संताली समाज को रूबरू कराने की जिद ठानी है। इन दिनों प्रो. मुर्मू पंचतंत्रम नामक पुस्तक का संताली अनुवाद कर रहे हैं। इससे पूर्व लॉकडाउन के दौरान प्रेमचंद की निर्मला का अनुवाद कर चुके हैं। प्रो. सुनील कहते हैं कि उनका मकसद अच्छी पुस्तकों व ग्रंथों से संताल समाज को अवगत कराना है, ताकि लोगों में साहित्य प्रेम की भावना और जागृत हो। निर्मला पुस्तक का संताली अनुवाद मार्च के अंतिम सप्ताह में शुरू किया। इसके लिए उन्होंने तीन बार इस किताब का अध्ययन किया। मई के अंतिम सप्ताह में यह कार्य पूरा हो गया। वर्तमान में वे विष्णु शर्मा के नीतिग्रंथ पंचतंत्रम का संताली अनुवाद कर रहे हैं। इसमें पशु-पक्षियों के जरिए साम, दाम, दंड, भेद का सरल चित्रण किया गया है। यह कार्य वे साहित्य अकादमी के सौजन्य से कर रहे हैं। इससे पहले वह अभिज्ञान शाकुंतलम का भी संताली में अनुवाद कर चुके हैं।
इन इलाकों में बोली जाती है संताली
संताली भाषा झारखंड के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा और पड़ोसी देश नेपाल तक बोली जाती है। झारखंड में यह कोल्हान, संताल परगना, धनबाद, बोकारो तक बोली जाती है।
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फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी ने किया सामवेद का अनुवाद
चाईबासा जिले के जगन्नाथपुर में पले-बढ़े और चाईबासा में पढ़े फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी ने सामवेद का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद किया है। उन्होंने बताया कि लगभग तीन-चार साल पहले एक फिल्म का लोकेशन (फिल्माने की जगह) देखने उत्तरप्रदेश के एटा गया था। वहां एक मठ में सामूहिक हवन ने उन्हें आकर्षित किया। मठ में जाकर हवन की पूरी प्रक्रिया देखी। लौटते समय मुख्य पुजारी ने उपहार में चारों वेद दिए। इसके बाद वेदों को पढ़ा। इस पर उर्दू व अंग्रेजी में सामवेद के अनुवाद का विचार आया। फिल्म निर्देशक के साथ-साथ लेखक और एक अच्छे कवि के रूप में भी अपनी पहचान बना चुके दुर्रानी ने बताया कि सामवेद के अनुवाद में ढाई साल का समय लगा। अनुवाद करने के बाद इसकी पांडुलिपि वेद के ज्ञाता पंडितों और विशेषज्ञों को पढऩे के लिए दी है। उन्होंने बताया कि उनके दादा मरहूम शेख महमूद साठ के दशक में मोकामा के सीसीएमई हाई स्कूल में संस्कृत पढ़ाते थे। उन्होंने बताया कि वहां जाने पर हर कोई उन्हें पंडित का पोता कहता था। यह सुनकर उन्हें अच्छा लगता था। उन्होंने बताया कि आज उन्हीं की प्रेरणा से सामवेद का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद कर पाया।
सामवेद में क्या है
'साम' शब्द का अर्थ है 'गान'। सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था। सामवेद में कुल 1875 ऋचाएं हैं। जिनमें 75 से अतिरिक्त शेष ऋग्वेद से ली गयी हैं। इन ऋचाओं का गान सोमयज्ञ के समय किया जाता था।फिल्म निर्देशक इकबाल दुर्रानी ने ढ़ाई साल की मेहनत के बाद सामवेद का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद पूरा कर लिया। अब इस पर विद्वानों की राय ले रहे हैं, ताकि वेद की मूल भावना को ठेस नहीं पहुंचे। साथ ही प्रकाशन के बाद किसी तरह का विवाद नहीं हो।
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श्री गुरुग्रंथ साहिब को संस्कृत में कराया उपलब्ध
करनाल के नीलोखेड़ी निवासी आचार्य जयनारायण शास्त्री 1989 में संस्कृत अध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद वह संस्कृत साहित्य सृजन में व्यस्त हो गए। इस दौरान इन्होंने सतप्रकाश महाराज को अपना संस्कृत साहित्य भेंट किया। ये पुस्तकें लेकर सतप्रकाश महाराज कनाडा चले गए और आचार्य जयनारायण का साहित्य एमसी गिल धार्मिक यूनिवर्सिटी कनाडा के डॉ. अरविंद शर्मा को दिया। यह साहित्य पढ़ने के पढऩे के बाद डॉ. शर्मा ने जयनारायण शास्त्री से अनुरोध किया कि वह श्रीगुरुग्रंथ साहिब का संस्कृत में अनुवाद करें। उनके आग्रह पर जयनारायण शास्त्री ने अप्रैल 2010 में अनुवाद का कार्य शुरू कर दिया। प्रत्येक माह अनुवाद के बाद करीब 500 श्लोक भेजने लगे। 5 जुलाई 2018 को यह काम पूरा हो गया। सेवानिवृत्त संस्कृत शिक्षक आचार्य जयनारायण शास्त्री ने आठ साल चार माह में इस अनुवाद को पूरा किया। महाभारत की तर्ज पर श्री गुरुग्रंथ साहिब को पर्वों में बांटा हुआ है। इसके 55 पर्व बने हैं, जबकि कुल 1759 पेज पर इन्हें उकेरा गया है। इसे लिखने में अनुस्तुक छंद का इस्तेमाल हुआ है।
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