सिंगापुर! दक्षिण एशिया का सबसे खूबसूरत देश जिसका विस्तार लगभग मुंबई शहर जितना है। यहां अंग्रेजी, मलय, चीनी और तमिल भाषाएं मुख्य रूप से व्यवहार में हैं। भारतीय मूल के लोगों की आबादी यहां लगभग 9 प्रतिशत है। इसमें भी दक्षिण भारतीय समुदाय के लोग अधिक हैं। उत्तर भारत की हिंदी पट्टी के लोग संख्या के लिहाज से सबसे कम कहे जा सकते हैं। अपनी आस्था, परंपरा, विश्वास, भाषा के साथ छपरा, आरा, बलिया, बनारस, गोरखपुर के उत्तर भारतीय यहां अलग—थलग से दिखते हैं। पर इन विपरीतताओं के बीच एक शख्सियत ऐसी है जो हिंदी को लोकप्रिय बना रही है, और वह हैं डॉ. संध्या जो सिंगापुर यूनिवर्सिटी में हिंदी की प्राध्यापिका हैं।

शादी के बाद 1996 में पहुंचीं सिंगापुर
बनारस में जन्मी, पली—बढ़ी संध्या सिंह 1996 में शादी के बाद जब सिंगापुर पहुंचीं तो कई सारी अबूझ पहेलियां थीं। वहां लमही के प्रेमचंद और काशी के गोवर्धनसराय के जयशंकर प्रसाद नहीं थे। पंत, निराला और महादेवी नहीं थीं...वहां बनारस सी बतरस नहीं थी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की साहित्य की छात्रा रहीं संध्या सिंह वहां सपने तो हिंदी में देखती थीं, लेकिन बातें अंग्रेजी में करती थीं। जिस साहित्य के प्रति मन में गहरा अनुराग था, आस—पास उसकी 'अनुपस्थिति' ने उनके मन में हिंदी के लिए एक ऐसा संकल्प पैदा कर दिया कि उन्होंने सिंगापुर में अपनी मातृभाषा की एक अलग दुनिया ही बसा ली। 

चीनी, मलय और तमिल के छात्र पढ़ रहे हिंदी
डॉ. संध्या कहती हैं कि सिंगापुर आने के बाद से ही हिंदी के लिए कुछ करने की बेचैनी बनी रही। समय के साथ यह संकल्प गहराता गया। उन्होंने सिंगापुर में इग्नू के केंद्र से पहले बीएड और फिर परास्नातक की पढ़ाई पूरी की इसके बाद बीएचयू से पीएचडी की उपाधि हासिल की। ये डिग्रियां, उपाधियां हासिल करने के बाद राह थोड़ी आसान हो गई। वह सिंगापुर विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर लैंग्वेज स्टडीज के हिंदी विभाग की फुल टाइम फैकल्टी बनीं। सिंगापुर विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर लैंग्वेज स्टडीज की स्थापना 2001 में की गई थी। डॉ. संध्या बताती हैं कि उनके विभाग में कई छात्र हिंदी की पढ़ाई कर रहे हैं। इन छात्रों में चीनी, मलय और तमिल बोलने वाले विद्यार्थियों की बड़ी तादाद है। डॉ. संध्या सिंगापुर में द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी की शिक्षा देने वाले संस्थान हिंदी सोसाइटी सिंगापुर की प्रबंधन समिति में उपसचिव हैं। इस संस्थान में लगभग साढ़े चार हज़ार छात्र हिंदी सीख रहे हैं जो सिंगापुर के स्थानीय विद्यालयों के छात्र हैं। अ—हिंदीभाषी छात्रों को हिंदी सिखाने की डॉ. संध्या की पुस्तक सिंगापुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई जा रही है। 

'सिंगापुर संगम' ने छात्रों के बीच हिंदी को लोकप्रिय बनाया
डॉ. संध्या ने बताया कि यहां हिंदी बोलने वाले अपनी भाषा को बहुत सहज और सम्मानित नहीं पाते थे। 2018 में उन्होंने सिंगापुर संगम नाम से आनलाइन त्रैमासिक पत्रिका शुरू की। इस पत्रिका में उन्होंने वयस्कों के साथ ही मुख्य रूप से छात्रों को जगह दी। हिंदी की विधाओं कविता, नाटक, एकांकी, कहानी को रोचक ढंग से छात्रों के बीच रखती हैं, ताकि वे हिंदी के निकट आ सकें। उनका यह प्रयास काफी लोकप्रिय हुआ। कम से कम सिंगापुर के छात्र हिंदी के बड़े लेखकों के नाम और हिंदी की विधाओं से परिचित होने लगे।

मार्च 2021 में महिला दिवस के अवसर पर 'शक्ति संगम'
डॉ. संध्या बताती हैं कि 2019 में साहित्यिक—सांस्कृतिक संस्था संगम सिंगापुर अस्तित्व में आई। सिंगापुर में उनके निजी प्रयासों से शुरू हुआ हिंदी का यह सफ़र बेहद लोकप्रिय हुआ। छायावदी रचनाकारों को लेकर आयोजित पहले कार्यक्रम में दो सौ लोग जुटे। सिंगापुर में हिंदी में अपनी तरह का यह पहला कार्यक्रम था। इसे खूब सराहा गया। 2019 में उन्होंने जब दूसरी बार हिंदी दिवस का आयोजन किया तो विश्व हिंदी सचिवालय का सहयोग मिला। उनका आयोजन 'साहित्य के खजाने से' सिंगापुर में बहुत पंसद किया जा रहा है। मार्च 2020 में उन्होंने पहली बार आनलाइन काव्य गोष्ठी आयोजित की और मार्च 2021 में महिला दिवस के अवसर पर भोजपुरी की जगतप्रसिद्ध गायिका मालिनी अवस्थी से बातचीत के साथ ही 'शक्ति संगम' का आयोजन किया। आज की तारीख में बीएचयू की हिंदी छात्रा संध्या सिंगापुर में हिंदी की नई सुबह हैं। 


इस रिपोर्ट के बारे में अपनी राय दें—news@prolingoeditors.com

2 Comments

  1. देखकर अच्छा लगा कि हिंदी के लिए सिंगापुर में भी काम हो रहा है। शुभकामनाएं संध्या जी!

    ReplyDelete

Post a Comment

Previous Post Next Post