नई दिल्ली : अनुवाद की एक गलती कितनी भारी पड़ सकती है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अनुवाद की जरा सी एक ग़लती ने एक शख्स का अंतिम संस्कार उसके वतन में नसीब नहीं होने दिया। जी हां। इस वर्ष जनवरी में सऊदी अरब में कार्यरत एक भारतीय के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। जेद्दा में भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने मरने वाले के मृत्यु प्रमाण पत्र में धर्म का अनुवाद गलत कर दिया, जिसके बाद शव सऊदी अरब में इस्लामिक रीति-रिवाज़ों के मुताबिक उसे दफना दिया गया।
   दिल्ली हाईकोर्ट के सामने मंगलवार 16 मार्च 2021 को ऐसा मामला पहुंचा जिसने सबको हैरानी में डाल दिया। सऊदी अरब में काम कर रहे भारतीय शख्स संजीव कुमार की 24 जनवरी को कार्डियक अरेस्ट की वजह से सऊदी अरब में मृत्यु हो गई थी, और उनके शव को वहीं एक अस्पताल में रखा गया था।

संजीव कुमार की पत्नी याचिकाकर्ता अंजु शर्मा ने कोर्ट में दाखिल अपनी अर्ज़ी में कहा कि पति की मौत की ख़बर मिलने पर परिवार ने अधिकारियों से शव को भारत पहुंचवाने का आग्रह किया था, लेकिन 18 फरवरी को याचिकाकर्ता को ख़बर दी गई कि उनके पति के शव को सऊदी अरब में दफना दिया गया है, जबकि परिजन भारत में उनके शव के पहुंचने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

एडवोकेट सुभाष चंद्रन केआर तथा योगमाया एमजी के ज़रिये दाखिल की गई याचिका में कहा गया, "भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने बताया कि ऐसा जेद्दा स्थित भारतीय दूतावास के आधिकारिक अनुवादक एजेंसी द्वारा की गई गलती की वजह से हुआ, जिन्होंने मृत्यु प्रमाणपत्र में धर्म के कॉलम में 'मुस्लिम' लिख दिया था। उन्होंने जेद्दा स्थित भारतीय दूतावास की आधिकारिक अनुवादक एजेंसी की ओर से क्षमायाचना पत्र भी याचिकाकर्ता को सौंपा।" याचिका में यह भी बताया गया है कि संजीव कुमार की पत्नी या परिवार के किसी भी अन्य सदस्य ने सऊदी अरब में संजीव के शव को दफनाए जाने की अनुमति नहीं दी थी।

इसके बाद, महिला ने जेद्दा स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों से आग्रह किया कि स्थानीय प्रशासन से उनके पति के शव को कब्र से निकलवाएं, ताकि भारत में शव का परिवार की मान्यताओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया जा सके। इस मामले में जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि महिला जनवरी से ही अधिकारियों के पास चक्कर काट रही हैं, जब उनके पति का देहांत हुआ, और शव को भारत लाकर अंतिम संस्कार करवाने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जाने चाहिए थे। जस्टिस ने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' मामला बताया।   Source: PTI

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