प्रोलिंगो न्यूज डेस्क : 
देश की
 जनगणना का कार्य निकट है। कोविड महामारी के चलते इस कार्य में विलंब संभावित है, लेकिन एक दशक बाद होने वाली इस जनगणना के नतीजों का सभी को इंतजार रहेगा। भाषा—भाषियों की संख्या के लिहाज से भी जनगणना काफी महत्वपूर्ण होती है। 2021 में देश में आबादी की गणना के नतीजे अभी भविष्य के गर्भ हैं, लेकिन नजर डालते हैं कि 2011 की गणना विभिन्न भाषा—भाषियों की संख्या के लिहाज से कैसी थी।


हिंदी प्रथम, बांग्ला दूसरे पायदान पर कायम : 2001 के मुकाबले 2011 में बांग्लाभाषियों की तादाद 16.63 प्रतिशत बढ़ी। हिंदी का सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा का दर्जा बरकरार था। हिंदी भाषियों की संख्या में करीब 25 फीसदी का इजाफा सामने आया था। 2011 में हिंदीभाषियों की संख्या 2001 के 41.03 प्रतिशत के मुकाबले कुल आबादी का 43.63 प्रतिशत हो गई थी।

तीसरे स्थान पर आई मराठी : पिछली जनगणना में मराठी ने तेलुगु को पीछे छोड़कर तीसरा स्थान हासिल कर लिया। देश में मराठीभाषी संख्या के लिहाज तेलुगु बोलने वालों अधिक हो गए। मराठीभाषियों का प्रतिशत जहां 2001 में 6.99 था, वहीं 2011 में यह 6.99 हो गया।

उर्दू पिछड़ी, गुजराती सातवें स्थान पर : 2011 की जनगणना के नतीजे बाद के वर्षों में एक—एक करके सामने आते रहे। इस बार के नतीजों में उर्दू एक पायदान नीचे चली गई थी। भारत में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषाओं की सूची में गुजराती ने उर्दू को पीछे छोड़ दिया था। 2001 में उर्दू सातवें पायदान पर थी जबकि 2011 में गुजराती आ गई।

संस्कृति सबसे कम बोले जाने वाली भाषाओं में शुमार : जनगणना के आं​कड़ों में सामने आया था कि देश की 96.71 प्रतिशत आबादी ने 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक की मातृभाषा के रूप में पहचान की थी। 3.29 लोगों ने 22 अनुसूचित भाषाओं से अलग भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में दर्ज किया। अनुसूचित भाषाओं में असमी बोलने वालों की संख्या में इजाफा हुआ था। 2001 की जनगणना के मुकाबले असमी बोलने वालों की संख्या एक दशक में 16.27 प्रतिशत बढ़ी थी।

2011 के आंकड़े बताते हैं कि अनुसूचित भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोले जाने वाली भाषाओं में शुमार है। दशक भर में संस्कृत बोलने वालों की संख्या में दशमलव 75 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। 
गैर-अनुसूचित भाषाओं में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा में राजस्थान में व्यवहृत भिली या भिलोड़ी थी जिसे बोलने वालों की संख्या 1.04 करोड़ थी।

नगालैंड, मिजोरम, मेघालय में 22 अनुसूचित भाषाओं से हटकर लोगों ने 'अदर लैंग्वेज' को चुना था।
2013 में पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया की ओर से कराए गए भाषा सर्वेक्षण में सामने आया था कि भारत में 780 भाषाएं और 66 लिपियां प्रचलन में हैं। यह रिपोर्ट 'द हिंदू' ने 2013 में प्रकाशित की थी।

1 Comments

  1. संस्कृत भाषा अपने व्याकरण, लिपि तथा शब्दकोश की दुरूहता के कारण जन सामान की भाषा नहीं बन पाई.इसलिए सर्वेक्षण में सबसे पीछे होती जा रही है.
    हमारे दैनिक जीवन यथा कारोबार, वित्त,व्यवसाय में स्थान नहीं पा सकी. इसके पिछड़ने का यह दूसरा बड़ा कारण हो सकता है.

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