सुप्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल की पुस्तक ‘तिल भर जगह नहीं’ का लोकार्पण


 

नई दिल्ली : केंद्रीय हिंदी संस्थान तथा विश्व हिंदी सचिवालय के संयुक्त तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार के ऑनलाइन आयोजन में मूर्धन्य साहित्यकार और यशस्वी संपादक अवधनारायण मुद्गल के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखित सुप्रसिद्ध साहित्यकार चित्रा मुद्गल की पुस्तक ‘तिल भर जगह नहीं’ का लोकार्पण किया गया।

विषय प्रवर्तन करते हुए हिंदी राइटर्स गिल्ड, कनाडा की निदेशक, प्रसिद्ध कथाकार शैलजा सक्सेना ने कहा कि अपने पति पर निष्पक्ष रूप से लिखना एक चुनौती थी जिसे चित्रा जी ने अत्यंत सक्षमता के साथ निभाया है। वरिष्ठ आलोचक  रेखा सेठी ने 'सारिका' के देह विशेषांक पर हंस के तत्कालीन संपादक राजेंद्र यादव द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणी पर बेबाक सवाल किए जिनके जवाब उसी बेबाकी से चित्रा जी ने भी दिए। चित्रा जी ने कई आत्मीय और व्यावसायिक प्रसंग साझा किए। चित्रा जी की कहानियों पर अवध जी की राय जानने की जिज्ञासा पर चित्रा जी ने बताया कि अवध जी उनकी कहानियों को गहरी आलोचकीय नजर से देखते थे और उन्हें लगातार तराशने के लिए प्रेरित करते थे। चित्रा मुद्गल ने कहा कि यह शोधपरक किताब लिखने के बावजूद अभी भी वे अवध जी को पूरी तरह जानने का दावा नहीं कर सकती हैं।

यह आयोजन केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष, वरिष्ठ लेखक अनिल जोशी के सान्निध्य में संपन्न हुआ। उन्होंने साहित्यिक पत्रकारिता में अवध नारायण मुदगल के बहुमूल्य योगदान को रेखांकित करते हुए 'सारिका' के लघु कथा विशेषांक के हवाले से संपादक के रूप में अवध जी के महती योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि अवध जी ने अपने समय के सभी बड़े लेखकों का ‘सा रे गा मा पा’ समझ लिया था और चित्रा जी की इस पुस्तक से हमें अवध जी को नई तरह से समझने का मौका मिलता है।

पुस्तक पर वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया, महेश दर्पण और अलका सिन्हा ने अपने विचार रखे। सुप्रसिद्ध कथाकार ममता कालिया ने ‘तिल भर जगह नहीं’ को महत्वपूर्ण पुस्तक बताते हुए कहा कि अवध ने कभी अपने संघर्षों का रोना नहीं रोया। उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि पचास साल तक हमसफर रहीं चित्रा के लिए अवध की जीवनी लिखना कोई आसान काम नहीं था।

"मिथकीय चेतना के अद्भुत रचनाकार अवध जी पर केंद्रित इस पुस्तक में उनके संघर्ष और विकास की कहानी है", यह कहना था जाने-माने कथाकार महेश दर्पण का, जिनका यह मानना था कि यह पुस्तक निबंध का एक नया फ़ॉर्मेट गढ़ती है। प्रतिष्ठित कथाकार-कवयित्री अलका सिन्हा ने संपादकीय व्यवसाय से अवध जी की रचनात्मकता पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित किया और भाषा के प्रति उनकी संवेदनशीलता को उजागर किया। जाने-माने भाषाविद नारायण कुमार, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, वरिष्ठ लेखिका तंकमणिअम्मा, शैल अग्रवाल, डॉ. वरुण कुमार, ललित मोहन जोशी ने भी चित्रा जी और अवध जी से जुड़े प्रसंगों को साझा किया। कार्यक्रम में भावपूर्ण  धन्यवाद ज्ञापन सिंगापुर से वरिष्ठ लेखिका संध्या सिंह ने किया।

Post a Comment

Previous Post Next Post