मशहूर शायर बशीर बद्र ने पेश किया पिता पर कलाम


वेब रिपोर्टर :
प्रयागराज में साहित्यिक संस्था ‘गुफ़्तगू’ की ओर से रविवार को फादर्स-डे पर ऑनलाइन मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता मशहूर शायर बशीर बद्र ने और संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। सबसे पहले युवा शायर अनिल मानव ने दोहा पेश किया-‘अपना दुख कहतेे नहीं, रखते सबका ध्यान/खुशियों का पर्वत लिए, पिता लगें हुनमान।’ डाॅ. बशीर बद्र के शेर बहुत खूबसूरत थे, उन्होंने कहा-‘खूबसूरत नई दुनिया होगी/मुझसे अच्छा मेरा बेटा होगा।’ इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा-‘यूं बाप का दुनिया में बदल हो नहीं सकता/मसला बिना कुछ उसके तो हल हो नहीं सकता।’ 

डाॅ. क़मर आब्दी का शेर खूब सराहा गया-‘खुद को कुर्बां करके हर वादा वफ़ा करता है बाप/हौसला बच्चों का हर लम्हा अता करता है बाप।’ नोएडा के शायर ओम प्रकाश यती ने कहा- ‘दुख तो गांव-मुहल्ले के भी हरते आए बाबूजी/पर जिनगी की भट्ठी में खुद जरते आए बाबूजी।’ इश्क़ सुल्तानपुरी ने बूढ़े मां-बाप की सेवा करने की नसीहत देते हुए कहा-‘जहां तक हो सके इज़्जत़ करो इनकी बेटों/बूढ़े मां-बाप की जिल्लत नहीं देखी जाती।’ युवा कवयित्री सुजाता सिंह ने कहा-पापा मेरे बड़े अच्छे हैं/दिल के वे बड़े सच्चे हैं/जब जब नाम मैं उनका लेती हूं/ सुंदर सपने के बीज पिरोती हूं।’ शगुफ़्ता रहमान ‘सोना’ ने पिता की अहमियत को रेखांकित किया-‘जरा होश आया उठा सर से साया/ है वालिद की दुनिया सभी की ज़रूरी।’ देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’ ने कहा-‘मेरे बाबा हमारे बीच नहीं है/ और बाबा की बखरी खाली वीरान पड़ी है।’ शैलेंद्र ने कहा कि-‘पापा हमारी जान थे, शान थे, पहचान थे/पापा ही तो हमारे चेहरे की मुस्कान थे।’ प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम् ने अलग अंदाज़ में कविता पेश किया-‘जीवन में हासिल जो होता, उसका है आधार पिता/ हल्का भारी सब गृहस्थी का ढोते हरदम भार पिता।’ नीना मोहन श्रीवास्तव ने गीत प्रस्तुत किया-‘हूं महकी कली तेरे आंगन की/चहकी सी चिरैया बाबुल की/तुम छांव घनेरी पीपल की/ मैं ठंडक उनके सीने की/ मैं बिटिया अपने बाबुल की।’ 

रचना सक्सेना की कविता यूं थी-‘ पिता की छत्रछाया/ उसका संबल होता/न व टूटता है/ न टूटने देता।’ हकीम रेशादुल इस्लाम ने कहा-‘हर एक दर्द सहता था/ वह अपने बच्चों के लिए सबसे कटकर रहता था/वह कभी लौटता रात को देर से/और कभी पसीना बहा लौटता था वह कुछ भी करता था/ बच्चों के लिए।’ डाॅ. निशा माथुर ने कहा-‘कन्या के जन्म लेते ही पिता, ऐसा पिता बन जाता है/ पल पल बढ़ते उसके रूपों संग, उसका रूप ढल जाता है।’

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