‘भारतीय भाषाओं में पारस्परिक अनुवाद : स्थिति और संभावनाएं’ विषय पर कार्यक्रम का आयोजन

वेब रिपोर्टर : विश्व हिन्दी सचिवालय, केंद्रीय हिन्दी संस्थान एवं वैश्विक हिंदी परिवार के तत्वावधान में ‘भारतीय भाषाओं में पारस्परिक अनुवाद : स्थिति और संभावनाएं’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में अतिथि वक्ता के रूप में विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरिशस के पूर्व महासचिव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधी नगर के पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) डॉ. आलोक गुप्ता, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के मुख्य समन्वय अधिकारी बुद्ध चन्द्रशेखर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के संपादक कुमार अनुपम थे। विषय प्रवर्तन वरिष्ठ पत्रकार और भाषाकर्मी राहुल देव ने किया। वरिष्ठ लेखक और केंद्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल, शिक्षा मंत्रालय के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा ‘जोशी’ के सानिध्य में हुए इस कार्यक्रम का संचालन हिन्दी भवन, भोपाल के निदेशक डॉ. जवाहर कर्नावट ने किया।
कार्यक्रम के आरंभ में वरिष्ठ लेखक डॉ. राजेश कुमार ने सभी का स्वागत करते हुए अनुवाद के विविध पहलुओं की चर्चा की। केंद्रीय हिन्दी संस्थान के दिल्ली केंद्र के निदेशक डॉ. प्रमोद शर्मा ने सभी अतिथि वक्ताओं एवं आयोजक मण्डल का संक्षिप्त परिचय देते हुए संस्थान के ‘भाषा सेतु कार्यक्रम’ तथा विविध अनुवाद पाठ्यक्रमों की जानकारी दी।
इस अवसर पर अनिल शर्मा ‘जोशी’ ने वक्ताओं के अनुभव व सुझावों को बहुत उपयोगी बताया। उन्होंने कहा कि हमें बचपन में मालूम ही नहीं था कि गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर बंगला के थे। हमने तो उन्हें केवल हिन्दी में पढ़ा था। केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से जुड़े अनुभव को साझा करते हुए उनका कहना था कि अनुवाद की व्यवस्था लचर है। आज जब जन-धन जैसे खातों में सीधा भुगतान हो सकता है तो अनुवादकों को मानदेय या रायल्टी क्यों नहीं दी सकती। पारस्परिक और पोर्टल सहयोग बढ़ाना चाहिए। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नई शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में हो रहे अनुवाद कार्य की प्रणाली सराहनीय है। उन्होंने भारतीय भाषाओं की सेवा को हेय दृष्टि और घाटे के नजरिए से ऊपर उठकर देखने की बात भी कही।
विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि भारतीय भाषाओं में संवाद बहुत महत्वपूर्ण है। अनुवाद ही केवल लक्ष्य नहीं है। हमें न केवल आठवीं अनुसूची की 22 भाषों को जोड़ना है बल्कि भारत की अन्य सैकड़ों भाषाओं से भी जुड़ना है। बेशक सरकारी तौर पर राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (एनटीएम) गठित है। केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, नेशनल बुक ट्रस्ट, साहित्य अकादमी आदि संस्थाएं हैं किन्तु उनकी सीमाएँ हैं।
केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आलोक गुप्ता ने कहा कि भारतीय भाषाओं के उत्तम साहित्य का अनुवाद के माध्यम से आदान-प्रदान होना चाहिए।
इस अवसर पर डॉ राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद का प्रकाशन मुश्किल होता जा रहा है। प्रादेशिक साहित्य अकादमियों को जोड़कर समन्वय होना चाहिए। पारस्परिक अनुवाद के लिए अनुवादकों का पैनल और ‘डाटा बैंक’ बनाना चाहिए।
साहित्य अकादमी के संपादक कुमार अनुपम ने कहा कि स्वाधीनता के ‘अमृत महोत्सव’ वर्ष में भारतीय भाषाओं में पारस्परिक अनुवाद और अन्तःसंबंध का महत्व रेखांकित करना श्रेयस्कर होगा। उन्होंने कहा कि अन्य भाषाओं के सम्मान और परिचय से अद्वितीयता और राष्ट्रीयता का भाव पैदा होता है। हमें विदेशी सोच रूपी अनुवाद के जेरोक्स से बचना चाहिए।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के समन्वयक बुद्ध चन्द्रशेखर ने अनुवाद संबंधी नए शोधों पर पावर प्वाइंट प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि अब 11 भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु अनुवाद कार्य प्रगति पर है। देश के चौदह कालेजों को अनुमति दी जा चुकी है। पहले अनुवाद की क्षमता 30 मिनट में 60 पेज करने की थी। उसकी समयावधि को 30 मिनट से 120 सेकेंड कर लिया गया है। उन्होंने ‘माइग्रेंट्स सिस्टम’ को समझाते हुए दिखाया कि ग्यारह भारतीय भाषाओं में किसी पर भी क्लिक करने से मनवांछित अनुवाद श्रव्य रूप में मिल जाएगा। यह बहुत ही शक्तिशाली टूल है। अब वीडियो फाइल का मशीनी अनुवाद भारतीय भाषाओं में हो जाएगा। दृष्टिहीन लोगों के लिए यह बहुत उपयोगी है।
मलयालम हिन्दी अनुवादक डॉ. केसी अजय कुमार ने प्रकाशन की समस्या से अवगत कराया। उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं (22) में परस्पर शब्दावली निर्माण की पुरजोर अपील की। उनका सुझाव था कि सेवाओं में चयन करते समय मातृभाषा, हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषा जानने वालों को अतिरिक्त अंक देने का प्रावधान होना चाहिए।
भाषाविद प्रो. वी. जगन्नाथन ने सरकारी तौर पर ‘राष्ट्रीय भाषा नीति बनाने हेतु दल गठित करने की वकालत की। इंडिया नेटबुक्स की ओर से संजीव कुमार ने कहा कि संयुक्त उपक्रम के लिए सभी भारतीय भाषाओं से प्रतिबद्ध प्रकाशकों को भी शामिल किया जाए। जापान से जुड़े पद्मश्री डॉ. तोमियो मिजोकामी ने परिचर्चा पर संतोष प्रकट किया और ‘भारतीय भाषा कोश’ के प्रथम संस्कारण की प्रति हाथ में लेकर दिखाई और उसे बहुत ही उपयोगी बताया।
प्रो. मणिक्यांबा का कहना था कि पाठक कम होने पर प्रकाशक भी कम रुचि दिखाते हैं। हमें प्रोफेशनल अनुवादकों को बढ़ावा देना चाहिए। केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक डॉ. बरुण कुमार का अनुभव था कि हिन्दी के लिए संस्थागत प्रयास कम हुए हैं। इसके अलावा हिन्दी से अन्य भाषाओं में भी अपेक्षाकृत कम अनुवाद हुआ है। सिंगापुर से प्रो॰ संध्या सिंह ने अतिथि वक्ताओं के प्रति आभार प्रकट किया।
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