गीतकार बालस्वरूप राही की पुस्तक ‘चलो फिर कभी सही’ का लोकार्पण और संवाद कार्यक्रम आयोजित 


वेब रिपोर्टर : 
केन्द्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, वैश्विक हिंदी परिवार एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में गीतकार बालस्वरूप राही की पुस्तक “चलो फिर कभी सही” का लोकार्पण एवं संवाद कार्यक्रम संपन्न हुआ। वरिष्ठ लेखक और केन्द्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल जोशी के सानिध्य में हुए इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में हिंदी एवं उर्दू के वरिष्ठ लेखक प्रो. सादिक, प्रख्यात कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी और वरिष्ठ कवि नरेश शांडिल्य थे। केंद्रीय हिंदी संस्थान की प्राध्यापक डॉ. अपर्णा सारस्वत ने बालस्वरूप राही एवं अन्य सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कथाकार एवं कवयित्री अल्का सिन्हा ने किया।

कार्यक्रम में अनिल जोशी ने कहा कि राही जी ने अपने स्वाभिमान के साथ कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ एवं साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी संस्थाओं को लोकप्रियता के शिखर पर स्थापित किया। राही जी कभी किसी पुरस्कार, सम्मान, खिताब, पद के लोभ में नहीं फंसे। कार्यक्रम में आकाशवाणी के विख्यात नाटककार, वृत्तचित्र निर्माता एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सादिक ने कहा कि राही जी की रचनाओं में दर्द, कसक, ज़ज्बात की गहराई तक गहरी पहुंच है।

वरिष्ठ कवि नरेश शांडिल्य ने पुस्तक के आवरण के लिए पूनम भटनागर की प्रशंसा की और साहित्य अकादमी के सम्मान के लिए राही जी को बधाई दी। शांडिल्य जी ने राही जी की किताब से चुनिंदा शेर पढ़े और उनकी रचनाधर्मिता की बारीकियों पर संजीदगी से चर्चा की। सुप्रसिद्ध रचनाकर लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने कहा कि राही जी ने अपने कवि धर्म के साथ जीवन का समग्र चित्रण किया है जिसमें, घर, परिवार, समाज, राजनीति, धर्म सब कुछ है और उनके तेवर में एक तीखापन है। संचालक अल्का सिन्हा ने राही जी के अनेक शेरों से अपनी बात को आगे बढ़ाया और कहा कि वे बहुत ही सच्ची बात कहते हैं और अपनी बहुत सी छिपी बातों को स्वयं उद्घाटित करते हैं।

कार्यक्रम में अपनी बात कहते हुए राही जी ने अपने जीवन के संघर्षों को याद करते हुए कहा कि मैंने खुद लिखा कि मैंने कविता लिखी हैं, कमाई नहीं हैं डिग्रियाँ और मैं अयोग्य हूँ, किंतु मैंने अपने आप से कभी समझौता नहीं किया। अपने बचपन में अपने भाई आदि को सुनता था जिससे रचनाओं के प्रति रुझान होता गया और मैं अच्छे लोगों के सामने तो सर झुकाता रहा किंतु खुद्दारी के साथ समझौता नहीं कर सका। दोस्तों ने जिसे डुबोया हो वो जरा देर में संभलता है की याद करते हुए उन्होंने नीरज जी के साथ अपने भावुक पलों को याद किया। “हम पर दुख का पर्वत टूटा तब हमने दो-चार कहे, उस पर क्या बीती होगी जिसने शेर हजार कहे” जैसी कालजयी रचना के रचनाकार ने अपने संकलन की रचना प्रक्रिया के अनेक पक्षों को साझा किया और कहा कि – “पूरी न हुई बात, चलो फिर कभी सही” और गहरा कटाक्ष किया कि - ‘जादू बड़े खिताब का, उस पर भी चल गया, ले दे के एक दोस्त था, वो भी बदल गया’ और ‘सत्ता की ताम झाम पर ललचा गया है वो यों, जैसे खिलौना देखकर बच्चा मचल गया’, ‘चेहरे पर उसके नूर था, जब वो फकीर था, उपलब्धि का गरूर अंधेरा सा मल गया’ और ‘जान-पहचान ढलानों से बनाए रखना’ जैसे अनेक शेर, मिसरे, रदीफ़ और काफियों को चुनते हुए उन्होंने ग़ज़ल को सहधर्मियों से बातचीत के रुप में स्वीकार किया और सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया। 

कार्यक्रम में कवि बीएल गौड़, रंजना अरगड़े, पद्मेश गुप्त, डॉ. शैलजा सक्सेना, अनूप भार्गव, संध्या सिंह, प्रेम भाटी ने भी राही जी के साथ अपने संस्मरण साझा किए और हाथ पकड़कर रास्ता दिखाती हुई रचनाओं की विशेषताओं पर अपने विचार व्यक्त किए। वैश्विक हिंदी परिवार के अंतरराष्ट्रीय संयोजक पद्मेश गुप्त ने आभार व्यक्त किया।

4 Comments

  1. हम पर दुख का पर्वत टूटा तब हमने दो-चार कहे, उस पर क्या बीती होगी जिसने शेर हजार कहे

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  2. हम पर दुख का पर्वत टूटा तब हमने दो-चार कहे, उस पर क्या बीती होगी जिसने शेर हजार कहे

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  3. जादू बड़े खिताब का, उस पर भी चल गया, ले दे के एक दोस्त था, वो भी बदल गया

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  4. बालस्वरूप राही जी की पुस्तक के विमोचन का वृतांत बहुत ही सरस ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

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