विश्व  हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान एवं वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से अंतरराराष्ट्रीय ई—संगोष्ठी का आयोजन


प्रोलिंगो न्यूज़ : भारत के बाहर कुछ ऐसे देश हैं जहां भारत का होना एक मनभावन और सुखद अहसास देता है। ऐसे देशों में त्रिनिदाद व टोबैगो और सूरीनाम प्रमुख हैं। ये देश अमेरिकन समुद्र के तटवर्ती दीप समूह हैं। यहां के लोग भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से गहराई से जुड़े हैं। उनके गिरमिटिया पुरखों ने यहां स्वदेश रचा है। वे हिंदी भाषा और संस्कृति को अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए संजोकर रखना चाहते हैं। विश्व  हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान एवं वैश्विक हिंदी परिवार के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को आयोजित ई—संगोष्ठी में इन देशों में हिंदी शिक्षण की स्थिति पर हुई चर्चा में वक्ताओं ने ये बातें रखीं। 
    
त्रिनिदाद व टोबैगो में भाषा-संस्कृति को बचाने की प्रशंसा 
त्रिनिदाद व टोबैगो में भारत के उच्चायुक्त अरुण कुमार साह ने वहाँ बड़े पैमाने पर रामायण पढ़े जाने, हिंदी गाने सुने जाने और भाषा संस्कृति को बचाने की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि यद्यपि हिंदी सरकारी स्कूली पाठ्यक्रम में नहीं है किन्तु अनेक संस्थाओं के सहयोग से पठन–पाठन जारी है। उन्होंने गत वर्षों में 18 हिंदी शिक्षण केंद्र होने तथा द्विपक्षीय छात्रवृति योजना में 34 विद्यार्थियों के लाभान्वित होने संबंधी तथ्य रखे।

भारतीय लोग चालीस वर्षों तक स्कूल नहीं जा सके   
त्रिनिदाद व टोबैगो में सेवानिवृत्त हिंदी अध्यापिका मैडम कमला रामलखन ने भारतीय मूल से पांच पीढ़ी या डेढ़ सौ वर्ष पूर्व आए गिरमिटिया लोगों की जीवटता को याद किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 1845 में यहां आने के बाद भारतीय लोग चालीस वर्षों तक स्कूल नहीं जा सके। उन्होंने भारत से आए पहले उच्चायुक्त श्री आनंद मोहन और पहले हिंदी प्रोफेसर हरीशंकर जी की कठिन साधना को याद किया। मैडम रामलखन ने बताया कि हिंदी के लिए शास्त्रीय संगीत का भी सहारा लिया जाता है। 

मांगलिक अवसरों के गीत आदि हमारी सांस्कृतिक थाती
त्रिनिदाद व टोबैगो में हिंदू प्रचार केंद्र के संस्थापक रवीन्द्र नाथ महराज ने सर्वप्रथम अपने पारिवारिक प्रेरणापुंज ताऊ जी की स्मृति को प्रणाम किया जो वहाँ पहले आए थे और झोपड़ी में हिंदी पढ़ाते थे। उन्हें अपनी खोई हुई अस्मिता और हिंदी भाषा की चिंता थी। उन्होंने बताया कि हिंदी हमारे परिवार की धरोहर है। “रामायण, हनुमान चालीसा, बैठक गाना और मांगलिक अवसरों के गीत आदि हमारी सांस्कृतिक थाती हैं। 

मंदिरों में पढ़ाई जाती है हिंदी 
सूरीनाम हिंदी परिषद की संयोजक मैडम सुषमा खेदू सुखराज ने बताया कि इस संस्था का शुभारंभ 5 सितंबर 1997 में हुआ। उनके द्वारा 5 जून 1873 की ऐतिहासिक घटना का स्मरण किया जब भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि 1960 में भारत से सूरीनाम गये हिंदी प्रचारक बाबू महातम सिंह हिंदी और संस्कृत बहुत समर्पण भाव से पढ़ाते थे। मैडम सुषमा ने बताया कि यहां श्रीराम नाम की नदी पर कुंभ का आयोजन होता है। मंदिरों में हिंदी पढ़ाई जाती है। प्रथमा, मध्यमा, प्रवेशिका और रत्न स्तर की परीक्षाएँ संचालित होती हैं। यहां अवैतनिक रूप से पढ़ाने वाले 80 अध्यापक हैं जिनके पढ़ाने से लगभग 700 छात्र परीक्षा देते हैं। निशुल्क पढ़ाने वाले ये अध्यापक स्वयं कक्षा का स्थान व छात्र ढूंढते हैं। मौखिक परीक्षा भी होती है। 

सोहर, विवाह गीत, मुंडन, बरहिया, जनेऊ आदि गीत प्रचलित   
सूरीनाम में हिंदी और डच के शिक्षक धीरज कंधारी ने उत्साहवर्धक ढंग से अपनी बात रखते हुए कहा, हिंदी ही हमारा व्यवहार और संसार है। लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व आए हमारे पुरखों ने जीविका और जीवन का संघर्ष किया। हिंदी में उनकी स्मृतियां बची और बसी हैं। अपनी भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए निःशुल्क हिंदी सिखाई जाती है। यहाँ केंद्रीय हिंदी संस्थान और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा की परीक्षाएँ भी आयोजित होती हैं। यहां नमस्ते और राम–राम शब्द ज्यादा चलता है। सोहर, विवाह गीत, मुंडन, बरहिया, जनेऊ आदि गीत प्रचलित हैं। मिश्रित भाषा भी चलती है। होली में पिचकारी कार्यक्रम लिकप्रिय है।  

1949 में रामबाण नामक पहली हिंदी फिल्म दिखाई गई
सूरीनाम में गिरमिटिया की पाँचवीं पीढ़ी की वंशज एवं विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र की हिंदी शिक्षिका मैडम शर्मीला रामरतन ने बताया कि यहां 60 पाठशालाओं में 120 अध्यापक हैं जहां लगभग 600 छात्र हिंदी पढ़ते हैं। यहां 1952 में मुंशी रहमान खान को प्रथम कवि के रूप में सरकारी तौर पर स्वर्ण पदक से नवाजा गया। वर्ष 1949 में रामबाण नामक पहली हिंदी फिल्म दिखाई गई। लोग आकाशवाणी से भी हिंदी सीखते हैं और मांगलिक कार्यों जैसे बेटा-बेटी के विवाह आदि के समय रेडियो पर इससे संबंधित गीतों की खूब फरमाइश करते हैं। हिंदी में रामलीलाएँ होती हैं तथा बैठक गाना बहुत लोकप्रिय है।  

इन देशों के लिए बनानी चाहिए  दीर्घकालिक योजना 
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने त्रिनिदाद व टोबैगो में अपनी यात्रा का एक संस्मरण सुनाया। बताया कि वह श्री रवींद्रनाथ महाराज जी के घर अपने गुरु पंडित विद्यानिवास मिश्र जी के साथ गए थे। उस वक्त मुख्य द्वार पर विधिवत उन लोगों की आरती उतारी गई थी। महराज दंपत्ति द्वारा पंडित मिश्र का बड़े प्रेम से पाँव पखारकर चरणामृत लिया गया था एवं शाल श्रीफल सहित सम्मानित किया जाना अवर्णनीय है। राहुल जी ने कहा कि भारत सरकार, विदेश मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय एवं अन्य अनुभवी लोगों को इन देशों के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी चाहिए जो वहां पंद्रह—सोलह पीढ़ियों तक चले। 

हिंदी सीखना और जरूरत होने पर हिंदी सीखना दो अलग बातें      
वयोवृद्ध साहित्यकार एवं कैरेबियाई भाषा विशेषज्ञ डॉ. सुरेंद्र गंभीर ने कहा कि इस देशों में संस्कृति संरक्षण है लेकिन भाषा की स्थिति डावांडोल है। वहां के वर्तमान राष्ट्रपति द्वारा संस्कृत में शपथ लेना सराहनीय है। अगले तीस वर्षों में ह्रास हो जाएगा। हिंदी सीखना और जरूरत होने पर हिंदी सीखना दो अलग अलग बातें हैं।  

कई छात्र हिंदी सीखकर यहां रोजगार पा चुके  
भारतीय उच्चायोग त्रिनिदाद से जुड़े शिव निगम ने कहा कि हम सकारात्मक माहौल बनाने हेतु प्रयत्नशील हैं। पत्रिकाओं में हिंदी लेख प्रकाशित होना, नई हिंदी कक्षाएं चलाना, शिक्षकों की गुणवत्ता सुधारना, लंबित परीक्षाएँ कराना और शुल्क आदि में छूट देने संबंधी कार्य जारी है। केंद्रीय हिंदी संस्थान हेतु अधिकाधिक नामांकन जारी है जहां से कई छात्र हिंदी सीखकर यहां रोजगार पा चुके हैं। 

बीए हिंदी की कक्षाएं चलाई गई थीं जो अब बंद     
लगभग तैंतीस वर्ष पूर्व वहां कार्य कर चुके प्रो सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा कि 1988 में उनके कार्यकाल के दौरान बीए हिंदी की कक्षाएं चलाई गई थीं जो अब बंद हैं। वहां के विश्वविद्यालयों में इसकी मान्यता देकर पुनः रोजगारपरक हिंदी स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करना श्रेयस्कर होगा। 

व्यक्तिगत व संस्थागत रूप से हर संभव प्रयास मदद का भरोसा
अपने सारगर्भित उद्बोधन में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं कार्यक्रम के आधार स्तम्भ अनिल शर्मा जोशी ने वक्ताओं के अनुभव व सुझाव को बहुत उपयोगी बताया। उन्होंने महामहिम उच्चायुक्त की गरमामयी उपस्थिति पर संतोष प्रकट किया। उन्होंने फ़िजी में अपने कार्यकाल को याद करते हुए जमीनी हकीकत बताई तथा व्यक्तिगत व संस्थागत रूप से हर संभव प्रयास मदद का भरोसा दिया। 

इससे पूर्व कार्यक्रम के आरंभ में साहित्यकार डॉ. राजेश कुमार ने सभी का स्वागत करते हुए कैरेबियन देशों के विस्तृत क्षेत्र एवं हिंदी की स्थिति का गहन एहसास कराया। केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे ने त्रिनिदाद व टोबैगो में भारत के महामहिम उच्चायुक्त की गरिमामयी उपस्थिति पर हर्ष प्रकट करते हुए उनका स्वागत किया। कार्यक्रम के संचालन का दायित्व नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर की प्रो. संध्या सिंह ने किया। कनाडा से जुड़ी वैश्विक हिंदी परिवार की संयोजक व हिंदी राइटर्स गिल्ड कनाडा की संस्थापक डॉ. शैलेजा सक्सेना ने अपने चिर–परिचित संयत और ओजपूर्ण वाणी में सभी अतिथि वक्ताओं के प्रति आभार प्रकट किया। 

ई—संगोष्ठी में उपस्थित वक्ता। 



1962 में आजादी पाने और 1973 में गणराज्य घोषित त्रिनिदाद व टोबैगो में संप्रति 13 लाख के लगभग आबादी है। डच, हिंदी, भोजपुरी, स्पेनी और अँग्रेजी क्रियोल रूप में चलती है। 

1975 में आजाद हुए सूरीनाम में कुल 10 जिले हैं जिनमें 5 जिलों में ही हिंदी पढ़ाई जाती है। लगभग पाँच लाख की आबादी वाले इस द्वीप की औपचारिक भाषा डच है। चालीस प्रतिशत भारतीयों के बीच हिंदी एवं भोजपुरी भी चलन में है। 

1 Comments

  1. सूरीनाम, टूबैगो तथा मारीशस में हिंदी की गरिमा को पढ़कर बहुत ही आत्मतुष्टि का अनुभव हुआ। भाषा के स्तर पर ऐसा लगा की ये हिंदुस्तानी मूल के लोग हमारे ही पूर्वजों के अंश हैं। प्रोलिंगो न्यूज़ का यह प्रयास काफी सराहनीय इन अर्थों में है कि वह भौगोलिक सीमाओं के पार जाकर भी अपनी जड़ों को टटोलकर हम पाठकों के सामने गौरवशाली इतिहास प्रस्तुत कर रहा है।

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