गुफ़्तगू की तरफ से साहिर लुधियानवी जन्म शताब्दी समारोह



वेब रिपोर्टर : साहिर लुधियानवी की शायरी में जनता की आवाज़ स्पष्ट रूप से जगह-जगह दिखाई और सुनाई देती है, उन्होंने अपनी शायरी के कथन को लेकर कभी समझौता नहीं किया। वे फिल्मों के लिए गीत अपनी शर्तों पर ही लिखते थे। यह बात मशहूर उर्दू आलोचक प्रो. अली अहमद फ़ातमी ने बुधवार को प्रयागराज में गुफ़्तगू की ओर से निराला सभागार में आयोजित ‘साहिर लुधियानवी जन्म शताब्दी समारोह’ के दौरान कही। प्रो. फ़ातमी ने कहा कि साहिर सिर्फ़ एक फिल्मी गीतकार ही नहीं थे। उन्होंने कई सामाजिक कार्य किए। कई पत्रिकाओं का कामयाब संपादन भी किया। उनकी संपादकीय में बहुत तल्ख सच्चाई होती थी, जिसकी वजह से उन पर कई बार मुकदमे भी कायम हुए थे। उन्होंने फिल्मों में साहित्य को स्थापित करने का भी काम किया। कार्यक्रम के दौरान इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की ओर संपादित पुस्तक ‘देश के 21 ग़ज़लकार’, अलका श्रीवास्तव की पुस्तक ‘किसने इतने रंग’, जया मोहन की पुस्तक ‘बिरजू की बंसी’ और गुुफ़्तगू के नए अंक का विमोचन किया गया।

मुख्य अतिथि पुलिस महानिरीक्षक कवींद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मैं साहिर के बारे में बहुत अधिक तो नहीं जानता लेकिन उनके लिखे फिल्मी गीत बचपन से ही सुनते आए हैं। उनकी याद में गुफ़्तगू की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में आकर  कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं। साहिर के बारे में वक्ताओं की बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा। गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि साहिर लुधियानवी अपने दौर के बहुत ही महत्वपूर्ण शायर थे, उनके 100वें जन्मदिवस पर उन्हें याद करना बेहद ज़रूरी था। इलाहाबाद सेे भी उनके तअल्लुकात थे। उनकी रिश्तेदारियां यहां थीं, जिसकी वजह से वह यहां कई बाए आए थे।

साहित्यकार रविनंदन सिंह ने कहा कि 1950 से 1970 के दौर में मज़रूह, कैफ़ी समेत कई बड़े शायर थे। उसी समय साहिर का शायरी की दुनिया में उदय हुआ था। 23 वर्ष की उम्र में उनका पहला काव्य संग्रह ‘तल्खियां’ प्रकाशित हुआ था। पहला संग्रह छपकर आते ही वो देश के बड़े शायर के रूप में सामने आए। पहले फिल्मों के पोस्टर पर गीतकार का नाम प्रकाशित नहीं होता था, लेकिन साहिर ने ही निर्माताओं से लड़ाई लड़कर इसकी शुरुआत कराई। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया। दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। नीना मोहन श्रीवास्तव, नरेश महरानी, शिवपूजन सिंह, सरिता श्रीवास्तव, संजय सक्सेना, शिवाजी यादव, अफसर जमाल, शिबली सना, सम्पदा मिश्रा, जया मोहन, मधुबाला, अजीत इलाहाबादी, श्रीराम तिवारी, अतिया नूर आदि ने कलाम पेश किए।

इन्हें मिला साहिर लुधियानवी सम्मान
नागरानी (अमेरिका), विजय लक्ष्मी विभा (प्रयागराज), अर्श अमृतसरी (दिल्ली), रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे (नागपुर), फ़रमूद इलाहाबादी (प्रयागराज), ओम प्रकाश यती (नोएडा), इक़बाल आज़र (देहरादून), मणि बेन द्विवेदी (वाराणसी), उस्मान उतरौली (बलरामपुर), रईस अहमद सिद्दीक़ी (बहराइच), डाॅ. इम्तियाज़ समर (कुशीनगर), रामचंद्र राजा (बस्ती), डाॅ. रामावतार मेघवाल (कोटा), डाॅ. क़मर आब्दी (प्रयागराज), विजय प्रताप सिंह (मैनपुरी), डाॅ. राकेश तूफ़ान (वाराणसी), डाॅ. शैलेष गुप्त वीर (फतेहपुर), तामेश्वर शुक्ला तारक (सतना), डाॅ. सादिक़ देवबंदी (सहारनपुर), अनिल मानव (कौशांबी) और ए. आर. साहिल (अलीगढ़).

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