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Source : Twitter |
वेब रिपोर्टर : बेलारूस की धाविका क्रिस्टीना सिमनोस्काया इन दिनों चर्चा में हैं। क्रिस्टीना ने हानोड एयरपोर्ट पर जापान पुलिस की मदद पाने के लिए गूगल ट्रांसलेट का सहारा लिया। जापान पुलिस ने उनकी सहायता की और वह सुरक्षित पोलैंड जा पहुंचीं। लेकिन क्रिस्टीना को पुलिस की मदद लेने की जरूरत क्यों आन पड़ी? यह जानने के लिए पूरे घटनाक्रम को समझना पड़ेगा।
दरअसल, टोक्यो 2020 ओलंपिक खेलों में धाविका क्रिस्टीना ने अपने कोचों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की। अव्यवस्था और दुव्र्यवहार की शिकायत करने के बाद बेलारूस के दल ने क्रिस्टीना पर कार्रवाई की। euronews.com की रिपोर्ट के अनुसार जब उन्होंने सोशल मीडिया पर टीम के प्रबंधन की आलोचना करने वाले संदेश पोस्ट किए तो बेलारूस के ओलंपिक दस्ते के अधिकारियों ने उन्हें 1 अगस्त को अपना बैग पैक करने का आदेश दिया। बेलारूस ओलंपिक समिति की अध्यक्षता देश के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के बेटे विक्टर लुकाशेंको कर रहे हैं। क्रिस्टीना के द्वारा सोशल मीडिया पर 'खुली चुनौती' के राजनीतिक अर्थ भी निकाले गए। बेलारूस में माहौल उनके खिलाफ बन गया।
क्रिस्टीना ने पोलैंड पहुंचने के बाद एक प्रेस वार्ता में बताया कि ओलंपिक विलेज से एयरपोर्ट के रास्ते में उन्होंने अपनी दादी से बात की। उन्होंने बताया कि बेलारूस लौटना सुरक्षित नहीं है। क्रिस्टीना के माता—पिता ने उन्हें पोलैंड जाने का सुझाव दिया। लेकिन समस्या यह थी कि अधिकारी उन्हें जबरन बेलारूस के विमान में बैठाने ले जा रहे थे। इसी दौरान उन्हें गूगल ट्रांसलेट का खयाल आया। उन्होंने मोबाइल में एक संदेश रूसी भाषा में लिखा और उसे गूगल ट्रांसलेट की मदद से जापानी में अनुवाद कर लिया। एयरपोर्ट पर उन्होंने वह संदेश दिखाकर पुलिस से मदद मांगी। जापान पुलिस ने क्रिस्टीना की पूरी मदद की।
क्रिस्टीना ने वारस में गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उसने बेलारूस से भागने की योजना नहीं बनाई थी। वह खुद को एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में नहीं देखती हैं। उन्होंने कहा, "मैं सिर्फ ओलंपिक में दौड़ना चाहती थी, यह मेरा सपना था। मुझे अब भी उम्मीद है कि ये मेरे जीवन का आखिरी ओलंपिक नहीं था"।
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