
वेब रिपोर्टर : हिंदी वह भाषा है जो संस्कृत, प्राकृत, पाली के सहज एवं सरलतम रूप में आम-जीवन में घुली मिली है। जिस तरह से भारत की सनातन संस्कृति आस्तिक-नास्तिक का भेद किए बगैर सबको साथ लेकर चलने में भरोसा रखती है, ठीक उसी तरह हिंदी का संसार भी बहुत विराट है। पड़ोसी देश चीन में भी हिंदी के अधिगम की असीम संभावनाएं हैं। इसके लिए जरूरी है कि आबादी के लिहाज से दुनिया के यह दोनों बड़े देश (चीन और भारत) अपनी हजारों साल पुरानी साझी सामाजिक सांस्कृतिक विरासत को आगे कर भाषा के संवर्द्वन के लिए एक दूसरे का सहयोग करते हुए बढ़ें।
यह बातें ‘केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल’ के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान’ तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से आयोजित बेव गोष्ठी के दौरान कहीं। विश्व हिंदी अधिगम विमर्श के 15वें खंड में ‘चीन में हिंदी अधिगम’ विषय पर जोशी ने कहा कि बाजार प्रभाव के कारण चीन में हिंदी के प्रति आकर्षण तो है ही, भाषा विषय के रूप में भी चीन के युवाओं में हिंदी के प्रति रुझान बढ़ा है। केंद्रीय हिंदी संस्थान में भी हिंदी की शिक्षा लेने के लिए चीन के युवाओं की आवक बढ़ी है। लेकिन आबादी के हिसाब से बड़े देश चीन की तरफ से जिस पैमाने पर पहल होनी चाहिए थी, वह अभी नहीं हो सकी है। हमें इस राह में आने वाली रुकावटों को दूर कर हमें हिंदी के प्रचार-प्रसार का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि चीन में हिंदी फिल्मों को देखने वालों की तादाद बहुत बड़ी है। कोई नृत्य, गीत, संगीत का हिंदी में कार्यक्रम होता है तो हजारों लोग आते हैं लेकिन क्या कारण है कि हम उन लोगों को औपचारिक रूप से शिक्षण कार्यक्रम में नहीं जोड़ पाते। हमें इस ओर ध्यान देना होगा और उन्हें ज्यादा से ज्यादा हिंदी पाठ्यक्रम से जोड़ने के लिए मिलजुल कर सामूहिक कदम उठाना चाहिए।
प्रमुख वक्ता के तौर पर सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज, पेइचिंग विश्वविद्यालय चीन के जियांग जिंगखुई ने चीन में हिंदी के 80 साल के इतिहास पर प्रकाश डाला तथा कहा कि वर्ष 1942 में चीन में हिंदी की विधिवत पढ़ाई शुरू हुई थी। अब चौथी पीढ़ी के लोग वहां हिंदी पढ़ रहे हैं। हलाकि धार्मिक रूप से अधिक नाष्तिक होना भी चीन में हिंदी के राह में रोड़ा जैसा है। प्रो. जिंगखुई ने कहा कि हाल के दिनों में भारत और चीन के संबंध थोड़ा कठिन दौर में हैं, लेकिन चीन में हिंदी पढ़ने वालों की तादाद बढ़ी है। उन्होंने भारत सरकार से अधिक हिंदी विद्ववान चीन के लिए भेजे जाने का प्रस्ताव भी किया।
इस क्रम में गुआंगदोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीन के हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रो. हु रुई ने बताया कि उनके यहां हिंदी पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है। 12 छात्रों का नामांकन हो चुका है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एकीकृत पद्धति से हिंदी को बढ़ावा दे सकते हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान से पढ़ी लिखी ओरिएंटल स्टडीज चीन की निदेशक तुआन मंग च्ये उर्फ सरिता ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हिंदी में बहुत काम हो रहा है। सांस्कृतिक मेल-जोल बढ़े तो भाषा का विकास भी स्वत: होगा।
दक्षिण एशियाई भाषा व संस्कृति विभाग चीन के सहायक प्रोफेसर विवेक मणि त्रिपाठी ने कहा कि आज चीन के 17 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। चीन और भारत का 2000 साल पुराना सांस्कृतिक संबंध है। दुनिया के और हिस्सों से जो भी आए सिर्फ भारत को लूटने आए, लेकिन चीन से आए फाह्यान और ह्वेनसांग भारत की संस्कृीति को जानने के लिए आए। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय जाकर पढ़ाई की, और भारत को समझा। आज जरूरत है उसी विरासत को संरक्षित करते हुए आगे बढ़ने की।
इस क्रम में वरिष्ठ पत्रकार, भाषा चिंतक राहुल देव ने कहा कि हिंदी दोनों देशों के बीच सेतु का काम कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीयों को भी चीनी भाषा सीखने के लिए उत्साह के साथ आगे आना चाहिए। दिल्ली केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार शर्मा ने बताया कि दिल्ली केंद्र के विशेष पाठ्यक्रम में 22 छात्र चीन से आए थे। इस बार भी 19 छात्रों ने दाखिला लिया। उन्होंने कहा कि चीन से आने वाले छात्रों को आने में असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में सरकार को वीजा नीति सरल बनानी चाहिए।
राजेश कुमार ने कहा कि एक चौथाई घर से, एक चौथाई अध्यापक से, और एक चौथाई सहपाठियों से सीख मिलती है। लगता है बाकी का एक चौथाई सभा—गोष्ठियों से ही मिलता होगा। केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा से जुड़े जोगेन्द्रज सिंह मीणा ने सहभागियों का स्वागत किया तथा नवीन लोहनी ने विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम का संचालन सिगांपुर की हिंदी प्राध्यापिका संध्या सिंह ने किया। कार्यक्रम के दौरान अरुणा अजीत सरिया, मजूमदार जी, डॉ. हरदीप, डॉ. पीयूष ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। अंत में जयशंकर यादव ने काव्य मयी तरीके से निर्मल मन से हिंदी चीनी की गंगा बहाएं कहकर अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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