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'आतंकवादी' और 'उग्रवादी' - ये दो शब्द अक्सर एक दूसरे के पर्याय के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, खासकर जब हिंसा और अशांति की बात होती है। हालांकि, इनकी जड़ें, उद्देश्य, लक्ष्य और कार्यप्रणाली में सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण अंतर मौजूद हैं। इन भेदों को समझना न केवल कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि विभिन्न संघर्षों की प्रकृति और उनकी संभावित समाधान की दिशा को समझने के लिए भी आवश्यक है।

परिभाषा और उद्देश्य का अंतर

आतंकवाद का मूल उद्देश्य आम नागरिकों के बीच भय और आतंक का माहौल पैदा करना है। आतंकवादी समूह बम विस्फोट, अपहरण या लक्षित हत्याओं जैसे हिंसक कृत्यों का सहारा लेते हैं, जिनका शिकार अक्सर निर्दोष लोग होते हैं। उनका अंतिम लक्ष्य राजनीतिक, धार्मिक या सामाजिक मांगों को सरकार या समाज पर दबाव डालकर मनवाना होता है। 9/11 के भयावह हमले या मुंबई में 26/11 की रक्तरंजित घटनाएं आतंकवाद के क्रूर चेहरे को दर्शाती हैं, जहाँ आम नागरिकों को आतंकित करके एक व्यापक संदेश दिया गया था।

इसके विपरीत, उग्रवाद किसी विशिष्ट विचारधारा या समूह के हितों की रक्षा या प्रचार करने के उद्देश्य से प्रेरित होता है। उग्रवादी अक्सर किसी विशेष क्षेत्र की स्वायत्तता, धार्मिक अधिकारों की स्थापना या किसी अन्य राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं। उनके हमले मुख्य रूप से सरकारी संपत्ति, सुरक्षा बलों या विरोधी समूहों पर केंद्रित होते हैं। कश्मीर में कुछ अलगाववादी समूहों की गतिविधियाँ या भारत में नक्सलवादी आंदोलन उग्रवाद के उदाहरण हैं, जहाँ उनका संघर्ष एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र और विचारधारा से जुड़ा हुआ है।

कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण

अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों में आतंकवाद को एक जघन्य अपराध के रूप में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। आतंकवादी गतिविधियों का कोई कानूनी आधार या व्यापक जनसमर्थन नहीं होता। उनकी हिंसा को निर्दोष नागरिकों पर अंधाधुंध हमला माना जाता है, जिसकी कड़ी निंदा की जाती है।

उग्रवाद के मामले में कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण अधिक जटिल हो सकता है। कुछ मामलों में, उग्रवादी गतिविधियों को सामाजिक-राजनीतिक असंतोष की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। इतिहास में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जहाँ एक समय के उग्रवादी समूहों को बाद में 'स्वतंत्रता सेनानी' के रूप में सम्मानित किया गया (जैसे, कुछ देश फिलिस्तीनी समूहों को उग्रवादी मानते हैं, जबकि अन्य उन्हें अपनी भूमि के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखते हैं)। यह वर्गीकरण अक्सर राजनीतिक दृष्टिकोण और सहानुभूति पर निर्भर करता है।

रणनीति और प्रभाव

आतंकवादी समूहों की रणनीति अक्सर यादृच्छिक हिंसा के माध्यम से मीडिया और जनता का ध्यान आकर्षित करना होती है। वे भय का ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जिससे सरकार पर उनकी मांगों को मानने का दबाव बने। उनका प्रभाव तात्कालिक आतंक और दीर्घकालिक अस्थिरता पैदा करना होता है।

उग्रवादी समूह आमतौर पर सैन्य या राजनीतिक लक्ष्यों पर केंद्रित हमले करते हैं। उनका उद्देश्य किसी क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करना या सरकार के साथ बातचीत के लिए दबाव बनाना हो सकता है। उनकी रणनीति अधिक लक्षित होती है, हालांकि इसमें नागरिकों की आकस्मिक क्षति भी हो सकती है।

इन उदाहरणों से समझें अंतर

आतंकवाद: यदि कोई संगठन भीड़भाड़ वाले सिनेमा हॉल या बाजार में बम विस्फोट करता है, जिसका सीधा उद्देश्य अधिक से अधिक निर्दोष लोगों को मारना और डर फैलाना है, तो यह आतंकवाद का स्पष्ट उदाहरण है। ISIS द्वारा किए गए हमलों में अक्सर इसी तरह की रणनीति देखी जाती है।

उग्रवाद: नक्सलियों द्वारा किसी दूरदराज के इलाके में पुलिस कैंप पर हमला करना या असम में ULFA (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम) द्वारा सुरक्षा बलों को निशाना बनाना उग्रवाद की श्रेणी में आता है, जहाँ उनका लक्ष्य राज्य की सत्ता को चुनौती देना और अपने राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करना है।

भारत में कानूनी परिदृश्य

भारत में आतंकवाद को विशेष कानूनों जैसे गैरकानूनी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम (UAPA) और अतीत में आतंकवाद निवारण अधिनियम (POTA) के तहत परिभाषित और दंडित किया जाता है। ये कानून आतंकवाद को एक गंभीर खतरा मानते हुए कठोर प्रावधान करते हैं।

उग्रवादी समूहों को नियंत्रित करने के लिए कभी-कभी राज्य-विशिष्ट कानूनों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि अशांत क्षेत्रों में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA)। यह कानून सुरक्षा बलों को कुछ विशेष अधिकार प्रदान करता है ताकि वे उग्रवाद से प्रभावी ढंग से निपट सकें।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य की जटिलता

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 'आतंकवादी' और 'उग्रवादी' की परिभाषाएँ वैश्विक स्तर पर भिन्न हो सकती हैं और अक्सर राजनीतिक विचारों से प्रभावित होती हैं। एक देश जिस समूह को 'उग्रवादी' मानता है, वही समूह दूसरे देश के लिए 'आतंकवादी' हो सकता है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण पाकिस्तान में सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा है, जिसे पाकिस्तान कुछ हद तक 'उग्रवादी' समूह के रूप में देखता है, जबकि भारत और कई अन्य देश इसे एक आतंकवादी संगठन मानते हैं।

आतंकवाद और उग्रवाद दोनों ही हिंसा और अशांति से जुड़े हैं और सामाजिक स्थिरता के लिए गंभीर चुनौतियाँ पैदा करते हैं। हालांकि, उनके बीच का मुख्य अंतर उनके लक्ष्य और उद्देश्य में निहित है। आतंकवाद मुख्य रूप से भय और आतंक फैलाने पर केंद्रित होता है ताकि राजनीतिक या अन्य मांगों को मनवाया जा सके, जबकि उग्रवाद किसी विशिष्ट विचारधारा या राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अधिक लक्षित हिंसा का उपयोग करता है। इन सूक्ष्म अंतरों को समझना विभिन्न संघर्षों की जटिल प्रकृति और उनके संभावित समाधानों पर विचार करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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