When dictionaries came into existence in India: भारत, एक ऐसी भूमि है जहाँ ज्ञान और भाषा का अटूट संगम रहा है। यहाँ शब्दकोशों, जिन्हें 'कोश' कहा जाता है, की एक समृद्ध और गौरवशाली परंपरा है जो हज़ारों वर्षों से चली आ रही है। संस्कृत, विद्वानों, व्याकरणविदों और कवियों की भाषा होने के कारण, भारत में शब्दकोशों के विकास की आधारशिला बनी। आइए, इस ज्ञान यात्रा के प्रमुख पड़ावों पर एक विहंगम दृष्टि डालते हैं, जिसमें कुछ और ज्ञात तथ्यों को भी शामिल किया गया है:
1. प्राचीन भारत: संस्कृत कोशों का स्वर्णिम युग (4थी शताब्दी ईसा पूर्व – 10वीं शताब्दी ईस्वी)
भारत में शब्दकोशों की प्रारंभिक झलक वैदिक साहित्य में मिलती है।
निघंटु (लगभग 1200–1000 ईसा पूर्व): वैदिक मंत्रों में प्रयुक्त जटिल शब्दों के अर्थों को स्पष्ट करने के लिए निघंटु नामक शब्द-संग्रहों का निर्माण किया गया था। ये वेदों की गूढ़ व्याख्याओं को समझने के लिए অপরিहार्य थे।
उदाहरण: यास्क का "निरुक्त" (लगभग 500 ईसा पूर्व), जो निघंटु पर आधारित एक भाष्य है, वैदिक शब्दों की व्युत्पत्ति और अर्थों को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करने वाला एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसे भाषा विज्ञान के प्रारंभिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
अमरकोश (4थी शताब्दी ईस्वी): संस्कृत के सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन शब्दकोशों में से एक "अमरकोश" है। इसकी रचना अमरसिंह ने की थी, जो गुप्त काल के राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे।
इसमें 10,000 से अधिक शब्दों को अर्थ के आधार पर विभिन्न विषयों जैसे देवता, जानवर, पौधे और मानव शरीर के अंगों आदि में वर्गीकृत किया गया है।
विशेषता: श्लोकों के रूप में रचित होने के कारण इसे कंठस्थ करना आसान था और यह सदियों तक शिक्षा और साहित्य का आधार बना रहा। इसकी लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि इसकी कई टीकाएँ लिखी गईं और यह भारत के बाहर भी बौद्धिक जगत में समादृत हुआ।
अन्य महत्वपूर्ण प्राचीन कोश: इस काल में कई अन्य उल्लेखनीय कोश भी रचे गए, जिन्होंने संस्कृत भाषा के शब्द भंडार को समृद्ध किया।
"अभिधानचिंतामणि" (हेमचंद्र, 12वीं शताब्दी): यह जैन विद्वान हेमचंद्र द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण कोश है, जिसमें पर्यायवाची शब्दों का विस्तृत संग्रह है।
"मेदिनीकोश" (मेदिनिकर, 12वीं शताब्दी): यह कोश अपने संक्षिप्त और सटीक अर्थों के लिए जाना जाता है। इसमें एक ही शब्द के अनेक अर्थों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया है।
"विश्वकोश" (लगभग 11वीं शताब्दी): कुछ विद्वानों का मानना है कि "विश्वकोश" नामक एक और प्राचीन संस्कृत कोश था, हालांकि इसके पूर्ण रूप में अवशेष उपलब्ध नहीं हैं।
2. मध्यकालीन भारत: क्षेत्रीय भाषाओं का अंकुरण और विकास (11वीं–18वीं शताब्दी)
इस काल में भारत की विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ और इनके अपने शब्दकोशों की आवश्यकता महसूस हुई।
द्रविड़ भाषाएँ:
तमिल में "चूड़ामणि निघंटु" (12वीं शताब्दी) एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक कोश था, जिसने तमिल भाषा के शब्दों को व्यवस्थित करने का प्रयास किया।
फ़ारसी-हिंदवी कोश: मुगल शासन के दौरान, फ़ारसी और स्थानीय भाषाओं के बीच संवाद को सुगम बनाने के लिए द्विभाषी कोशों का निर्माण हुआ।
"ख़ालिक़ बारी" (1580): अमीर खुसरो द्वारा रचित माना जाने वाला यह फ़ारसी-हिंदी शब्दकोश प्रारंभिक द्विभाषी कोशों में से एक है, जो आम बोलचाल के शब्दों को फ़ारसी और हिंदी में प्रस्तुत करता है।
3. आधुनिक युग: पश्चिमी प्रभाव और व्यवस्थित कोशों का निर्माण (19वीं–20वीं शताब्दी)
ब्रिटिश शासन के प्रभाव और पश्चिमी शिक्षा प्रणाली के आगमन के साथ, भारतीय भाषाओं में आधुनिक शैली के शब्दकोशों का निर्माण शुरू हुआ।
हिंदी का पहला आधुनिक शब्दकोश:
"शब्दसागर" (1873–1883): श्यामसुंदर दास द्वारा संपादित यह हिंदी का पहला विस्तृत और प्रामाणिक शब्दकोश माना जाता है। इसने हिंदी भाषा के मानकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
"हिंदी शब्द सागर" (1929): नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित यह कोश "शब्दसागर" का परिवर्धित और अद्यतन संस्करण था, जो हिंदी साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए एक मानक संदर्भ ग्रंथ बन गया।
अन्य भारतीय भाषाएँ: इस दौरान अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं में भी महत्वपूर्ण शब्दकोश प्रकाशित हुए।
बंगाली: राजा राममोहन राय, एक महान समाज सुधारक और विद्वान थे, जिन्होंने "बंगाली-इंग्लिश डिक्शनरी" (1817) का संकलन किया, जो बंगाली भाषा के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण कदम था।
मराठी: महात्मा फुले, एक प्रमुख समाज सुधारक और लेखक, ने अपने कार्यों में भाषा को सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। हालांकि "तृतीय रत्न" (1855) एक नाटक है, फुले की भाषा संबंधी जागरूकता और शब्दावली का प्रयोग मराठी शब्दकोशों के विकास के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। विष्णु वामन बापट का "बापट शब्दकोश" (19वीं शताब्दी के अंत) मराठी के शुरुआती व्यवस्थित शब्दकोशों में से एक है।
तमिल: "चात्तिरमुत्तु कोशम" (1824) तमिल भाषा के शुरुआती मुद्रित शब्दकोशों में से एक था।
4. स्वतंत्रता के बाद का दौर (1947 के बाद)
स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार और विभिन्न साहित्यिक संस्थानों ने भारतीय भाषाओं के विकास और मानकीकरण पर विशेष ध्यान दिया।
ऑक्सफ़ोर्ड हिंदी-इंग्लिश डिक्शनरी (1993): रुडी मैकलीन और अन्य विद्वानों द्वारा संपादित यह द्विभाषी कोश हिंदी और अंग्रेजी भाषियों के बीच एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ बन गया।
"भारतीय भाषा कोश": राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (नेशनल बुक ट्रस्ट) ने विभिन्न भारतीय भाषाओं में शब्दकोश प्रकाशित किए, जिससे भाषाई विविधता को बढ़ावा मिला।
डिजिटल कोश: वर्तमान में, डिजिटल तकनीक के आगमन के साथ, विभिन्न भारतीय भाषाओं के ऑनलाइन शब्दकोश और भाषा संसाधन उपलब्ध हैं, जो भाषा सीखने और उपयोग को और भी सुगम बनाते हैं। इनमें सरकारी और निजी दोनों तरह के प्रयास शामिल हैं। उदाहरण के लिए, भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया भारतवाणी पोर्टल एक बहुभाषी शब्दकोश और भाषा सीखने का मंच है।
भारत में शब्दकोशों का इतिहास एक सतत विकास की गाथा है, जो वैदिक काल के निघंटुओं से शुरू होकर आधुनिक डिजिटल युग के बहुभाषी कोशों तक फैला हुआ है। ये कोश न केवल भाषाई ज्ञान के भंडार हैं, बल्कि ये भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता, बौद्धिक परंपरा और ज्ञान की अटूट खोज के प्रतीक भी हैं। समय के साथ, शब्दकोशों का स्वरूप और तकनीक बदलती रही है, लेकिन भाषा को व्यवस्थित करने और ज्ञान को संरक्षित करने का उनका मूल उद्देश्य आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है। ये कोश हमारी भाषाई विरासत को सहेजते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
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