प्रोलिंगो न्यूज डेस्क : आज बिस्मिल का जन्म दिवस है। काकोरी के नायक राम प्रसाद बिस्मिल को दुनिया उनके उस जज्बे, हौसले के लिए याद करती है जिसने बिरतानी हुकूमत की चूलें हिला दी थीं। 30 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूमने वाले आजादी के इस नायक को इतिहास 'गरम दल' यानी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के वीर के रूप में याद करता है, लेकिन सदी के इस महानायक की कलम से भी उतनी ही यारी थी जितनी हथियारों से। उनके कवि, शायर रूप से तो बहुत सारे लोग परिचित हैं लेकिन उनके एक भाषाविद, अनुवादक होने का तथ्य कहीं दब सा जाता है। 

शाहजहांपुर में 11 जून 1897 को पैदा हुए राम प्रसाद की कलम से सृजन की यात्रा किशोरावस्था में ही शुरू हो गई थी। क्रांतिकारी जीवन में कलम उठाई तो खूब लिखा और जो लिखा उसे खुद ही प्रकाशित किया। अपनी लिखी पुस्तकों को बेचकर जो पैसे मिले उससे आजादी के संग्राम के लिए हथियार खरीदे। हथियारों के दम पर स्वाधीनता के संग्राम की एक नई गाथा लिखने वाले इस नायक ने साहित्य और इतिहास पर भी लिखा। उनके सृजनात्मक व्यक्तित्व का सबसे उम्दा पक्ष उनका कई भाषाओं का जानकार होना है। वह उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला भाषाओं में समान अधिकार रखते थे। अपने 11 साल के क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने अंग्रेजी की पुस्तक 'कैथरीन' का हिंदी अनुवाद किया तो बांग्ला में लिखी पुस्तक 'बोल्शेविकों की करतूत' का हिंदी अनुवाद किया। 19 दिसंबर 1927 को क्रूर अंग्रेजी राज ने कलम और साहस दोनों के नायक को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी लेकिन उनकी कलम की स्याही से जो चिंगारी निकली वह हमेशा के लिए आज़ादी के दीवानों का एक क्रांतिनाद बन गई...

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना, बाजू—ए—कातिल में है। 

बाहरी लिंक—बिस्मिल की आत्मकथा पढ़ें

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