आलेख | डॉ॰ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के जन्मदिन पर विशेष
डॉ॰ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी (जन्म 20 जून 1940) प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार हैं और 2013 से 2017 तक साहित्य अकादमी के अध्यक्ष रहे हैं। अकादमी ने उन्हें महत्तर सदस्य बना कर अपना सर्वोच्च सम्मान दिया है। वे गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली 'दस्तावेज' नामक साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका के संस्थापक-संपादक हैं। यह पत्रिका रचना और आलोचना की विशिष्ट पत्रिका है, जो 1978 से नियमित प्रकाशित हो रही है। सन् 2011 में उन्हें व्यास सम्मान तथा 2019 में ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी सम्मान प्रदान किया गया।
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी साहित्य के अनवरत सहज साधक हैं। उन्होंने गांव की धूल भरी पगडण्डी से इंग्लैण्ड, मारीशस, रूस, नेपाल, अमरीका, नीदरलैण्ड, जर्मनी, फ्रांस, लक्जमबर्ग, बेल्जियम, चीन और थाईलैण्ड की जमीन नापी है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कई सम्मान हासिल किये। रूस की राजधानी मास्को में साहित्य के प्रतिष्ठित पुश्किन सम्मान से नवाजे गये। उन्हें उत्तर प्रदेश की सरकार ने शिक्षक श्री का सम्मान दिया।
उनका रचनाकर्म देश और भाषा की सीमा तोड़ता है। उड़िया में कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए। हजारी प्रसाद द्विवेदी पर लिखी आलोचना पुस्तक का गुजराती और मराठी भाषा में अनुवाद हुआ। इसके अलावा रूसी, नेपाली, अंग्रेजी, मलयालम, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तेलुगु, कन्नड़ व उर्दू में भी इनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ। 1978 से हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका 'दस्तावेज' का लगातार प्रकाशन कर रहे हैं। वहीं इसके सम्पादक भी हैं। उनके शोध व आलोचना के 11 ग्रंथ, 7 कविता संग्रह, दो यात्रा संस्मरण, एक लेखकों का संस्मरण व एक साक्षात्कार पुस्तक प्रकाशित हो चुका है।उन्होंने हिन्दी के कवियों, आलोचकों पर केन्द्रित 20 अन्य पुस्तकों का सम्पादन किया है। उनकी डायरी (दिनरैन) तथा आत्मकथा (अस्ति और भवति) भी प्रकाशित हो चुकी है। इसके लगभग दो दर्जन विशेषांक प्रकाशित हुए हैं, जो ऐतिहासिक महत्व के हैं। डा. तिवारी की प्रकाशित पुस्तकों की शृंखला में आलोचना की नौ पुस्तकें, 6 कविता संकलन, दो यात्रा संस्मरण, एक लेखक संस्मरण, एक साक्षात्कार संकलन तथा 147 विभिन्न पुस्तकों का संपादन शामिल है। साथ ही उनकी कई रचनाओं का विदेशी और भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, भारत मित्र संगठन मास्को द्वारा पुश्किन सम्मान भी मिल चुका है। उनके द्वारा संपादित पत्रिका 'दस्तावेज' को सरस्वती सम्मान भी मिल चुका है। उन्हें पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान 2007 से भी सम्मानित किया गया है।
प्रस्तुत हैं विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताएँ/कुछ अंश
1
अभी-अभी लौटा हूँ उस अंधकार से
जहाँ वे पूछते हैं तुम्हारे शब्दों के अर्थ
उन्हें कैसे समझा
ता कि शब्द अर्थ ही होता है
या फिर व्यर्थ होता है।
उन्होंने उन फैसलों को नहीं समझा
जिन्हें तुमने अपनी रोशनी में लिखा था
और वे अपने अंधकार में कराहते हुए ठंडे हो गए
ईश्वर को पुकारते और भद्दी गलियाँ बकते हुए
तुम मेरी आँखों में अब भी उन्हें देख सकते हो
उनमें वे अनकहे शब्द हैं
जो मरते समय उनकी जुबान पर थे।
तुम चाहो तो उस अंधकार की ओर लौट सकते हो
जिसमें वे अपने बाल-बच्चों सहित खो गए
उस अंधकार में असंख्य ध्वनियाँ हैं
उस मिट्टी, पानी, धूप, हवा तक पहुँचाने के लिए
जहाँ सही भाषा बनती है
और कोश और परिभाषाएँ
2 . पुस्तकें!
जहाँ भी रख दें वे
पड़ी रहना इंतजार में
आएगा कोई न कोई
दिग्भ्रमित बालक जरूर
किसी शताब्दी में
अँधेरे में टटोलता अपनी राह
स्पर्श से पहचान लेना उसे
आहिस्ते-आहिस्ते खोलना अपना हृदय
जिसमें सोया है अनंत समय
और थका हुआ सत्य
दबा हुआ गुस्सा
और गूँगा प्यार
दुश्मनों के जासूस
पकड़ नहीं सके जिसे!
3. शुरुआत
शुरू करो क ख ग से।
भाषा जो बोलते हैं उनकी है।
बेतों के जंगल में
कुछ भूखे-नंगे लोग
दूसरों के लिए कुर्सियाँ बीन रहे हैं।
तुम क्या होना चाहते थे
और वह क्या है
जिसने तुम्हें वह नहीं होने दिया?
स्त्री बच्चा
रोटी बिस्तर
या और कुछ?
तुम यहाँ जैसे आए थे
क्या वैसे ही रह गए हो?
शुरू करो क ख ग से।
भाषा अर्थहीन हो गई है
लौटो और देखो।
कुछ लोग अब भी खड़े हैं।
लाख ढकेलने के बावजूद
ढहे नहीं हैं।
बता दो पुलिस को
अँधेरे को, सन्नाटे को
अट्टहास करती, मुँह बिराती
मशीनों को, चीजों को
वे अभी हैं,
हैं और ढहे नहीं हैं।
प्रस्तुति : डॉ सुनीता यादव
परिचय : डॉ. सुनीता यादव, (पीएचडी, हिंदी) विषय : फणीश्वरनाथ रेणु के कथा साहित्य का समाजशास्त्रीय अध्ययन। आरम्भिक शिक्षा हरियाणा के रेवाड़ी जिले के छोटे से गाँव नांगल पठानी में हुई। एमए, बीएड तक पढ़ाई दिल्ली बोर्ड और दिल्ली विश्वविद्यालय से की। पीएचडी अपनी पोस्टिंग के दौरान गोवा विश्वविद्यालय से की।
उप निदेशक (कार्यान्वयन) सेवानिवृत्त (अगस्त 2019)
क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय, पश्चिम, मुंबई
राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार।
"अस्ति और भवति" मैंने पढ़ी है, शानदार रचना है.प्रोफेसर विश्वनाथ जी ने, जैसा मैं समझ पाता हूं, कुछ छिपाया नहीं है अपने व्यक्ति के जीवन के बारे में.
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