सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक आडियो में प्रसिद्ध लेखक से बातचीत का दावा![]() |
चित्र परिचय : लेखक सुरेंद्र वर्मा की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। यही तस्वीर वीकिपीडिया पर लेखक के परिचय के साथ उपलब्ध है। वीकिपीडिया ने इस चित्र का परिचय कुछ यूं दिया है — भारत भवन, भोपाल में नाटक 'शकुंतला की अंगूठी' देखने के उपरांत। |
प्रोलिंगो न्यूज़ : सोशल मीडिया पर बृहस्पतिवार को एक आडियो तेजी से वायरल हुआ, जिसे प्रतिष्ठित हिंदी लेखक सुरेंद्र वर्मा का बताया जा रहा है। इस आडियो में वह एक शोधार्थी को साक्षात्कार देने के लिए 25 हजार रुपये की मांग कर रहे हैं। आडियो के वायरल होते ही बौद्धिक वर्ग से लेकर आम विद्यार्थी—शोधार्थी में बहस शुरू हो गई है। कुछ लोग जहां इसे अनैतिक मान रहे हैं वहीं कुछ लोगों का मानना है कि साक्षात्कार लेखक की बौद्धिक संपदा है और लेखक ने अगर पैसे मांग दिए तो यह उसका हक है।
3 मिनट 52 सेकेंड का है आडियो
हाल में ही सोशल नेटवर्किंग एप वॉट्सऐप पर एक आडियो तेजी से तैरना शुरू हुआ। 3 मिनट 52 सेकेंड के इस आडियो में बातचीत एक युवक से शुरू होती है जो अपना परिचय प्रयागराज निवासी वीरेंद्र तिवारी के रूप में देता है। युवक खुद को शोधार्थी बताता है। आडियो के साथ भेजे जा रहे संदेश में दावा किया गया है कि 'वीरेंद्र तिवारी' जिनसे बात कर रहा है वह 'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक' के लेखक साहित्यकार सुरेंद्र वर्मा हैं।
लेखक के दो कथनों पर घमासान
युवक वीरेंद्र तिवारी ने सुरेंद्र वर्मा से अपने किसी शोधार्थी मित्र के साथ शोध के सिलसिले में साक्षात्कार करने की बात कही। आडियो में स्पष्ट सुना जा सकता है कि युवक के इस सवाल पर 'सुरेंद्र वर्मा' ने कहा कि वह साक्षात्कार के लिए 25 हजार रुपये लेंगे। इस टेप में बातें और भी हैं, लेकिन कथित तौर पर सुरेंद्र वर्मा के जिन दो कथनों पर बौद्धिक जगत में घमासान मचा है वह है 'साक्षात्कार के लिए 25 हजार रुपये लूंगा' और 'दुनिया में पहली और आखिरी चीज़ पैसा है...यह मेरा विश्वास है'।
पैसे मांगने को लेकर सबके अपने तर्क
देश के एक प्रतिष्ठित साहित्यकार द्वारा साक्षात्कार देने के लिए कथित तौर पर पैसों की मांग ने एक बहस खड़ी कर दी है जिसमें बौद्धिक समाज दो पक्षों में बंट गया दिखता है। सोशल मीडिया पर चल रही बहसों में कुछ लोग अध्ययन—अध्यापन के लिहाज से इसे निहायत अनैतिक ठहरा रहे हैं तो कुछ का मानना है कि साक्षात्कार में एक लेखक अपने अनुभवों के आधार पर कोई टिप्पणी देता है। कोई भी टिप्पणी उसकी बौद्धिक संपदा के दायरे में आती है। अगर लेखक ने पैसे मांग लिये तो कोई अपराध नहीं किया।
हिंदी समाज को मिला चर्चा का नया मुद्दा
यह आडियो कितना सच है और कितना झूठ, यह तो जांच का विषय है लेकिन इसके बहाने हिंदी समाज को एक नई चर्चा जरूर मिल गई। इस आडियो में दर्ज किसी बुजुर्ग लेखक की आवाज में पैसों की मांग तो जरूर सुनी जा सकती है, लेकिन वह लाचारी भी सुनी जा सकती है जो एक अभावग्रस्त लेखक की हो सकती है। आडियो में दर्ज आवाज लेखक सुरेंद्र वर्मा की हो या किसी अन्य की, सवाल उतना ही प्रासंगिक रहता है कि उम्र तमाम करने के बाद शोहरत के अलावा जीवन काटने के लिए जरूरी 'पैसों' की शक्ल में लेखक के पास क्या होता है। अगर पैसों की 'बिना किसी शील—संकोच वाली मांग' किसी अभावग्रस्तता से उपजी है तो उसे नैतिकता के तराजू पर तौलना उचित होगा अथवा इसे एक लेखक के हक के रूप में देखा जाना चाहिए?
'मुझे चांद चाहिए' को 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
7 सितंबर 1941 को झांसी में पैदा हुए सुरेंद्र वर्मा 'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक' नाटक से प्रतिष्ठित नाटककार, लेखक के रूप में स्थापित हो गए। यह कृति 1972 में प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक अब तक छह भारतीय भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। उनके उपन्यास 'मुझे चांद चाहिए' को 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया, जबकि इससे पूर्व 1992 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड दिया गया था। उनके नाटक उपन्यास पर फिल्में भी बनी हैं।
हमारा समाज ज्ञान को, शिक्षा को दान की वस्तु मानता है। यह जीवन मूल्य अभी भी उसके संस्कार में जस का तस पड़ा हुआ है। संभव है कि लोग पैसे मांगने की बात को उसी चश्मे से देख रहे हों। आज के समय में जब हर चीज बिकाऊ है लेखक अपने "ज्ञान" के पैसे मांगता है तो इसमें लोगों को आश्चर्य नहीं व्यक्त करना चाहिए। जितने भी प्रकाशक हैं आखिर वे इसी का तो व्यवसाय कर रहे हैं।
ReplyDeleteविमर्श
ReplyDeleteयह अप्रासंगिक प्रश्न उठाने के पीछे औचित्य क्या है?
ReplyDeleteक्या सरकार या किसी व्यक्ति ने उनके लिए फिक्स मनी डिपाजिट करवा रखी है? क्या उनके पास जीवन यापन के लिए पर्याप्त पैसे है? क्या उन्हें अपनी गुजर बसर करने का हक़ नही है। लेखक महोदय ने भी ज्ञान अर्जित करने में अपना पूरा जीवन लगाया है। अब यदि वह उसकी कीमत ले रहे है तो गलत कहाँ है? जीविकोपार्जन के लिए हर व्यक्ति को पैसे की जरूरत होती है। हर इंसान को अपनी मेहनत और ज्ञान का पैसा लेने का हक़ है अन्यथा मुफ्त में बिकने वाली चीज की वैसे भी वैल्यू नही रह जाती।
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